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________________ २८६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म एक ग्रन्थ में' २४ विज्ञप्ति पत्रों का परिचय है, जिसमें से आधे सचित्र हैं । शाही 'चित्रकार शालिवाहन द्वारा चित्रित उपयुक्त विज्ञप्ति पत्रों के चित्रों में सिरोही, जोधपुर, सोजत, धाणी आदि के विज्ञप्ति पत्रों का भी विवरण है। अजीमगंज मुर्शिदाबाद के एक विज्ञप्ति पत्र में सम्पूर्ण चित्रावली, जयपुर नगर की दी हुई है। १७२५ ई० में एक सचित्र पत्र मनि विजयक्षमा सूरि को निमन्त्रित करने के लिये सिरोही से पाटण को प्रेषित किया गया था इसकी लम्बाई २४ फीट ४ इंच है। इसी प्रकार का एक पत्र १७९१ ई० में जोधपुर से विजय जैनेन्द्र को गुजरात के डमोहो स्थान को भेजा गया था। यह २५ फीट ५३ इंच लम्बा तथा ८ इंच चौड़ा है। एक अन्य विज्ञप्ति पत्र १७४४ ई० में महाराणा जोरावर सिंह के शासनकाल में बीकानेर से राधनपुर में रह रहे जिनभक्त सूरि को प्रेषित किया गया था, जो ९ फीट ७ इंच लम्बा और ९ इंच चौड़ा है। विज्ञप्ति पत्रों के चित्रों में सामान्यतया मंगल कलश, वाद्य यन्त्रों को बजाती हुई महिलाएँ, तीर्थंकर की माताओं के १४ स्वप्न तथा प्रेषक नगर के जैन मन्दिरों, मुनियों, राजाओं, बाजारों आदि का चित्रण किया जाता था। इनमें जैनेतर मन्दिर भी दर्शाये जाते थे। प्राचीन इतिहास की कड़ियाँ जोड़ने में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है । तत्कालीन नगरों के प्रारूप, मकान, दुकानें, मस्जिद, उपाश्रय आदि के साथ राजाओं व श्रेष्ठियों के चित्र की भी कम महत्ता नहीं है। नगर-वर्णनात्मक अनेक गजलें हिन्दी साहित्य को · इन्हीं विज्ञप्ति पत्रों की देन हैं । निष्कर्ष एवं विशेषताएं: सचित्र ताड़पत्रीय ग्रन्थों को विशेषताएं : विषय की दृष्टि से इन ग्रन्थों के चित्र तीर्थंकरों, देव-देवियों, मुनियों व धर्मरक्षकों की आकृतियों तक ही प्रायः सीमित रहे । चित्रकार के सम्मुख संयोजन व पृष्ठभूमि की विशेष समस्या नहीं थी। आकृति की मुद्राएँ सीमित एवं रूढ़िगत हैं । आकृति अंकन रेखात्मक है, जिसमें त्रिगुणात्मक गहराई नहीं आ सकी। रंगों का प्रयोग भी परिमित १. एन्शेन्ट विज्ञप्ति पत्राज, हीरानन्द शास्त्री द्वारा सम्पादित, १९४२ । २. आकृति ८०, पृ० २१ । ३. सुरपत सिंह दुग्गड़ के संग्रह में । ४. आकृति ८०, पृ० २१ । . ५. एन्शेन्ट विज्ञप्ति पत्राज, पृ० ४५ । ६. वही, पृ० ४८। ७. राभा, ३, अंक ३-४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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