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________________ ३४ बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैनदृष्टि से समीक्षा क्षमाश्रमण के द्वादशारनयचक्र का भी पर्याप्त महत्त्व है। उमास्वाति (द्वितीय तृतीय शती) जैन दर्शन को सर्वप्रथम संस्कृत-सूत्रों में प्रतिपादित करने का कार्य आचार्य उमास्वाति ने किया। उमास्वाति को उमास्वामी एवं गृद्धपिच्छ के नाम से भी जाना जाता है। १४८ इनका समय ईसवीय दूसरी एवं तीसरी शताब्दी निर्विवाद रूप से मान्य है । उमास्वाति की रचना तत्वार्थसूत्र संक्षिप्तरूप में जैनदर्शन के तत्त्वों को प्रकाशित कर मोक्ष मार्ग को प्रशस्त करती है,अतः इस सूत्र को मोक्षशास्त्र नाम से भी जाना जाता है। प्रमाण एवं नय की चर्चा भी बीज रूप में इसी सूत्र में विद्यमान है जो आगे अंकुरित एवं पल्लवति हुई।१४९ तत्वार्थसूत्र में दस अध्याय हैं, किन्तु सूत्रों की संख्या एवं कहीं कहीं सूत्रों के स्वरूप में भी श्वेताम्बर व दिगम्बर तत्त्वार्थसूत्र परस्पर मतभेद रखते हैं,५° तथापि दोनों की विषय वस्तु एक है। इसमें जीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष इन सात तत्त्वों का विस्तृत विवेचन है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यकचारित्र को मोक्ष का मार्ग बताया गया है । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान,मनःपर्यवज्ञान एवं केवलज्ञान को प्रमाण कहकर इन्हें दो भागों में सर्वप्रथम उमास्वाति ने विभक्त किया है । वे इनमें से प्रथम दो ज्ञानों को परोक्ष प्रमाण में तथा अन्तिम तीन ज्ञानों को प्रत्यक्ष प्रमाण में विभक्त करते हैं । १५१ यही प्रत्यक्ष-परोक्ष के रूप में प्रमाण-विभाजन जैनन्याय में आदृत हुआ । उमास्वाति तत्वार्थसूत्र में अनुमानप्रमाण का उल्लेख नहीं करते,किन्तु अनुमानप्रमाण का पक्ष, हेतु एवं उदाहरण इन तीन अवयवों के आधार पर प्रयोग करते हुए देखे जाते हैं। उन्होंने अनेकत्र ऐसा प्रयोग किया है ।एक उदाहरण द्रष्टव्य है पक्ष- मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च । हेतु-सदसतोरविशेषाद्यदृच्छोपलब्धः। उदाहरण-उन्मत्तवत् १५२ जैनदर्शन में तत्त्वार्थसूत्र पर उसी प्रकार भाष्य,वार्तिक आदि का निर्माण हुआ जिस प्रकार न्यायदर्शन में न्यायसूत्र पर। श्वेताम्बर मतावलम्बियों के अनुसार स्वयं उमास्वाति ने तत्त्वार्थसूत्र पर भाष की रचना की । पूज्यपाद देवनन्दी (५वीं शती उत्तरार्द्ध) ने सर्वार्थसिद्धि नामक टीका का निर्माण १४... दिगम्बर मत में तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता गृद्धपिच्छाचार्य है, ऐसा प० फूलचन्द्र शास्त्री ने सिद्ध किया है ।- सर्वार्थसिद्धि, पृ०५६ १४९. प्रमाणनयैरधिगमः।-तत्त्वार्थसूत्र , १.६ १५०. दिगम्बर तत्त्वार्थसूत्र में कुल ३५७ सूत्र है, जबकि श्वेताम्बर तत्त्वार्थसूत्र में ३४३ सूत्र हैं, इसलिए कुछ विद्वान् दिगम्बर तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता गृद्धपिच्छ को उमास्वामी अथवा उमास्वाति से पृथक् सिद्ध करते हैं। १५१. तत् प्रमाणे । आद्ये परोक्षम् । प्रत्यक्षमन्यत् ।-तत्त्वार्थसूत्र १.१०-१२ १५२. तत्त्वार्थसूत्र, १.३२-३३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
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