SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुमान प्रमाण ,३८२ दृष्टान्ताभासों का निरूपण है३८१ वहां धर्मकीर्ति के न्यायबिन्दु में साधर्म्य एवं वैधर्म्य दृष्टान्ताभासों के नौ-नौ भेद सोदाहरण निरूपित हैं। साधर्म्य दृष्टान्ताभास के नौ भेद यथा- (१) साध्यधर्मविकल, (२) साधनधर्मविकल, (३) उभयधर्मविकल, (४) सन्दिग्धसाध्यधर्मा, (५) संदिग्धसाधनधर्मा, (६) संदिग्धोभयधर्मा, (७) अनन्वय, (८) अप्रदर्शितान्वय, और (९) विपरीतान्वय । इसी प्रकार वैधर्म्य दृष्टान्ताभास के नौ भेद हैं, यथा- (१) असिद्धसाध्यव्यतिरेक, (२) असिद्धसाधनव्यतिरेक, (३) असिद्धो भयव्यतिरेक, (४) संदिग्धसाध्यव्यतिरेक, (५) संदिग्धसाधनव्यतिरेक, (६) संदिग्धोभयव्यतिरेक, (७) अव्यतिरेक, (८) अप्रदर्शितव्यतिरेक और (९) विपरीतव्यतिरेक । जैन दर्शन में सिद्धसेन ने साधर्म्य एवं वैधर्म्य दृष्टान्त दोषों के छह भेद निरूपित किये हैं 1 अकलङ्क ने दृष्टान्त दोषों का स्पष्ट निरूपण नहीं किया है, किन्तु उनके टीकाकार वादिराज ने बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति द्वारा प्रतिपादित साधर्म्य एवं वैधर्म्य दृष्टान्त-दोषों के नौ नौ भेदों को ही अपना लिया हैं। माणिक्यनन्दी ने अन्वयदृष्टान्ताभास एवं व्यतिरेकदृष्टान्ताभास के रूप में दो भेद कर उनके चार - चार भेदों का निरूपण किया है । ३८४ वादिदेवसूरि ने बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति द्वारा निरूपित दृष्टान्त दोषों को ही आदृत किया है, ३८५ किन्तु उनके उदाहरणों को स्वमतानुरूप बदल दिया है। यथाप्रसंग उन्होंने बौद्धों का खण्डन भी किया है, यथा संदिग्धसाधन व्यतिरेक दृष्टान्ताभास के उदाहरण में शौद्धोदनि में रागादि की निवृत्ति को संदेहास्पद बतलाया है । ३८६ ३८३ २८३ सारांश यह है कि दृष्टान्त के स्वरूप, भेद एवं दृष्टान्ताभासों की संख्या को लेकर बौद्ध एवं जैन दार्शनिकों में कोई विवाद नहीं है । दृष्टान्त को परार्थानुमान का अवयव मानने में कुछ मतभेद अवश्य है। बौद्ध दार्शनिकों ने हेतुलक्षण में ही दृष्टान्त का समावेश कर लिया है, जबकि जैन दार्शनिक उसका हेतुलक्षण में समावेश नहीं करते हैं तथा उसे पृथक् अवयव भी नहीं मानते हैं, किन्तु दृष्टान्ताभासों के उदाहरणों में यथावसर उन्होंने बौद्धों का खण्डन किया है। हेत्वाभास , तु नहीं होता, किन्तु हेतु के सदृश प्रतीत होता है उसे भारतीय दर्शन में हेत्वाभास कहा गया है । बौद्ध दार्शनिकों ने त्रिरूप हेतु को सद्हेतु कहा है इसलिए वे उन तीन रूपों में से एक रूप का कथन न करने पर भी उसे हेत्वाभास मानते हैं । ३८७ जैन दार्शनिकों ने हेतु का एक ही लक्षण स्वीकार किया है - साध्य के साथ निश्चित अविनाभाव । उसका अभाव होने पर वे हेतु को हेत्वाभास मानते ३८१. द्रष्टव्य, न्यायप्रवेश, पृ. ५-६ ३८२. साधर्म्येणात्र दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिताः । अपलक्षणहेतूत्थाः साध्यादिविकलादयः ॥ वैधर्म्येणात्र दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिताः । साध्यसाधनयुग्मानामनिवृत्तेश्च संशयात् ॥ - न्यायावतार २४-२५ ३८३. द्रष्टव्य, न्यायविनिश्चयविवरण, भाग-२, पृ. २४०-४१ ३८४. परीक्षामुख, ६.४०-४५ ३८५. प्रमाणनयतत्त्वालोक, ६.५८-७९ ३८६. प्रमाणनयतत्त्वालोक, ६.७५ ३८७. तत्र त्रयाणां रूपाणामेकस्यापि रूपस्यानुक्तौ साधनाभासः । - न्यायबिन्दु, ३.५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002113
Book TitleBauddh Pramana Mimansa ki Jain Drushti se Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Culture, & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy