SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाधिमरण सम्बन्धी जैन साहित्य लेनेवाले व्यक्तियों के नामों पर विस्तारपूर्वक विवेचन मिलता है। आराधना की चर्चा करते हए इसकी उपयोगिता, प्रतिज्ञा, स्वरूप, भेद आदि का विस्तृत उल्लेख है। ११४ मरण के सत्तरह प्रकार११५ जैसे अवीचीमरण, तद्भवमरण, अवधिमरण, वैहायसमरण, पृष्ठमरण, बालमरण, पण्डितमरण, बालपण्डितमरण, पण्डितपण्डितमरण आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। भक्तप्रत्याख्यानमरण का विस्तृत विवेचन है। इसे अविचार एवं सविचार दो भागों में बाँटा गया है तथा सविचार भक्तप्रत्याख्यानमरण का उल्लेख चालीस अधिकार-सूत्रों की सहायता से किया गया है।११६ उपसर्ग सहन करते हुए जिन व्यक्तियों ने समाधिमरणपूर्वक अपना देहत्याग किया था, उनका भी उल्लेख है। इनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं११७- धर्मसिंह, ऋषभसेन, जयसेन, थकताल, सुकुमाल, गजकुमार, सुकौशल आदि। इसमें यथास्थान कषाय क्षीण करनेवाली साधना आस्रव, निर्जरा, नरकगति वेदना, तथा मोक्ष आदि विषयों का भी उल्लेख किया गया है।११८ (ग) समाधिमरण को प्रकाशित करने वाले संस्कृत ग्रन्थ आराधनासार इसके रचयिता आचार्य देवसेन हैं। इसमें कुल ११५ गाथाएँ हैं।११९ जिनमें दार्शनाराधना, ज्ञानाराधना, चारित्राराधना और तपाराधना का उल्लेख किया गया है। साथ ही इसमें परीषह एवं उपसर्गों को सहन करते हए विभिन्न व्यक्तियों के द्वारा लिए गए समाधिमरण का भी वर्णन मिलता है। प्रमुख व्यक्तियों के नाम इस प्रकार हैं१२०- शिवभूति, सुकोमल, गुरुदत्त, पाण्डव, गजकुमार आदि। इसमें समाधिमरण लेने की योग्य अवस्था का विस्तृत विवेचन है। समाधिमरण लेने की मुख्य अवस्था है १२१- अत्यधिक वृद्धावस्था, जीर्ण-शीर्ण काया, अचानक मृत्यु का प्रसंग उपस्थित होना आदि। इन अवस्थाओं में समाधिमरण करने से व्यक्ति निर्वाण प्राप्त कर लेता है। इसमें यह भी लिखा हुआ है कि व्यक्ति को समाधिमरण करने से पूर्व अपने कषाय को अल्प कर लेना चाहिए, क्योंकि अल्प कषाय से युक्त व्यक्ति के मन की चंचलता समाप्त हो जाती है तथा उसके मन में किसी तरह का क्षोभ उत्पन्न नहीं होता है। वह शुभध्यान में लीन रहता है तथा मोक्ष पद की प्राप्ति करता है। १२२ इस प्रकार यह ग्रन्थ मुख्य रूप से आराधना पर बल देते हुए आराधना के द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy