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________________ समाधिमरण सम्बन्धी जैन साहित्य ५३ के कारण इसकी सभी गाथाएँ किसी न किसी रूप में समाधिमरण से सम्बन्धित हैं। પ इसमें पंडितमरण", संसारपरिभ्रमण, पञ्चमहाव्रत, वैराग्य". व्युत्सर्ग", पंडितमरण, बालमरण", एकत्वभावना, आदि का विवेचन जागतिक सम्बन्धों की संयोगिकता ं, ममत्व-त्याग, निन्दा - आलोचना, आलोचनाफल", भावनाशुद्धि‍, निवेद आदि विषयों का विस्तार से वर्णन किया गया है। 3 इसमें प्रत्याख्यान के महत्त्व का निरूपण बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है तथा यह बताया गया है कि इसके सम्यक् पालन से सिद्धि (मुक्ति) की प्राप्ति होती है । १८ प्रत्याख्यान या त्याग से तात्पर्य समाधिमरण से ही है, क्योंकि समाधिमरण भी एक प्रकार का प्रत्याख्यान ही है। मरणविभक्ति प्रकीर्णक मरणतिभक्ति को मरणसमाधि नाम से भी जाना जाता है। इसमें कुल ६६१ गाथाएं हैं। लेकिन देवेन्द्रमुनि जी का मानना है कि इसमें कुल गाथाएं ६६३ हैं तथा इसकी रचना निम्नलिखित आठ श्रुतग्रन्थों को आधार बनाकर की गई है ९ (१) मरणविभक्ति, (२) मरणविशोधि, (३) मरणसमाधि, (४) सल्लेखना श्रुत, (५) भक्तपरिज्ञा, (६) आतुरप्रत्याख्यान, (७) महाप्रत्याख्यान और (८) आराधना । ६९ J इस प्रकीर्णक में मरणविधि, आराधना, पंडितमरण २, सशल्यमरणनिः शल्यमरण", संक्लिष्ट भावना७४, असंक्लिष्ट भावना ५५ शुद्ध विवेक ६, बालमरण', अभ्युद्दतमरण, आचार्यपदमूल ५९, बाह्य आभ्यन्तर सल्लेखना '", पंचमहाव्रत', व्युत्सर्ग^२, आराधनाभेद एवं फलर, परीषहसहन४, ममत्वत्याग" बारह भावना, पादपोपगमन समाधिमरण लेनेवालों के कथानक आदि का उल्लेख है। " समाधिमरण का विवेचन चौदह अधिकार - सूत्रों की सहायता से किया गया है। इनमें से कुछ हैं-- आलोचना, सल्लेखना, क्षमापना, काल, उत्सर्ग, उद्ग्रास, संथारा, निसर्ग, वैराग्य, मोक्ष आदि । ९ इसमें सनतकुमार", गजसुकुमाल, स्कन्दक शिष्य ९२ आदि प्रमुख व्यक्तियों के समाधिमरण का उल्लेख प्रस्तुत किया गया है। भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक भत्तपरिण्णापइण्णय या भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक में गाथाओं की कुल संख्या १७३ है। यह वीरभद्र द्वारा रचित है। इस ग्रन्थ में अभ्युद्यतमरण, उसके भेद९४, गुरु९५, मुनि ९६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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