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________________ ३६ समाधिमरण समाज विरोधी बताया है, वहीं दूसरी ओर उन्होंने ऐच्छिक देहत्याग को प्रशंसनीय भी कहा है। लेकिन आत्ममरण करनेवाला व्यक्ति तभी प्रशंसा का पात्र माना जा सकता है जब वह कुछ विशेष परिस्थितियों के उत्पन्न हो जाने पर देहत्याग करता है। उनके अनुसार निम्न परिस्थितियाँ हैं - असाध्य बीमारी, असह्य शारीरिक दुःख, वैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाना जिसमें अधिक समय तक जीवित रहना सम्भव नहीं हो, जैसे चारों तरफ भयानक अग्नि में फंस जाना, डूबने जैसी स्थिति पैदा हो जाना, दुष्टात्माओं के बीच फँस जाना, हिंसक पशु और मनुष्यों के बीच घिर जाना आदि परिस्थितियों में यदि व्यक्ति देहत्याग का निर्णय करता है तो उसका यह आत्ममरण या मृत्युवरण प्रशंसनीय है।११५ थॉमस मोरे ऐच्छिक देहत्याग का समर्थन करते हैं। वे कहते हैं कि व्यक्ति मृत्युवरण कर सकता है। लेकिन मृत्युवरण करने के पूर्व उसे उसकी सूचना पहले किसी पादरी या न्यायाधीश को दे देनी चाहिए। उनकी आज्ञा मिल जाने पर व्यक्ति मृत्युवरण के लिए स्वतन्त्र है- अर्थात् वह इच्छापूर्वक मृत्युवरण कर सकता है। लेकिन यहाँ भी मोरे ने व्यक्ति की योग्यता को प्रस्तुत किया है, अर्थात् वही व्यक्ति मृत्युवरण कर सकता है जो असह्य, असाध्य एवं दुःखदायी रोग से पीड़ित है।५१३ मोरे का यह विचार ईसाई परम्परा के कनफेशन (Confession) की अवधारणा को मानकर चलता है। सन्त जेरोम के अनुसार-धर्म रक्षार्थ, शारीरिक पवित्रता की रक्षा तथा अन्य इसी तरह की परिस्थितियां में व्यक्ति आत्ममरण कर सकता है।११४ स्टोक्स (Stokes) ने इच्छापूर्वक मृत्युवरण का समर्थन करते हुए कहा है कि यह व्यक्ति को सभी तरह के दुःखों से छुटकारा दिलाती है, ५१. अर्थात् मृत्युवरण के द्वारा व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है, क्योंकि बिना मोक्ष प्राप्त किए वह सभी तरह के दुःखों से मुक्त नहीं हो सकता है। माण्टेस्क्यू मृत्युवरण के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मृत्युवरण व्यक्ति का अधिकार है।५१६ वाल्तेयर चर्च द्वारा प्रतिपादित मृत्यवरण विरोधी कानुन की निन्दा करते हुए कहते हैं कि मृत्युवरण से सम्बन्धित यह कानून मृत्युवरण करनेवाले व्यक्ति के सगे-सम्बन्धियों, पुत्र-पुत्रियों तथा उसके उत्तराधिकारियों को उनके पैतृक अधिकार से वंचित करने का एक षड्यन्त्र है। वे कहते हैं कि अगर मृत्युवरण एक अपराध है तो युद्ध महा अपराध, क्योंकि यह समाज और मानव जाति दोनों के लिए अधिक हानिकारक है।११० युद्ध में भाग लेनेवाला व्यक्ति यह मानकर चलता है कि इसमें उसके प्राण भी जा सकते हैं। कमोवेश यह भी एक तरह का ऐच्छिक मृत्युवरण ही है, लेकिन उसकी सर्वत्र प्रशंसा की जाती है। युद्ध में व्यक्ति अपने देश और मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देता है और वह प्रशंसनीय माना जाता है, तो क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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