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________________ ३० समाधिमरण किया वह समाधिमरण के तुलनीय है। उनके फांसी के फन्दे पर झूलने का कारण स्वेच्छा नहीं, राजाज्ञा थी । H महानाम का मन ध्यान की अवस्था में एकाग्रचित्त नहीं हो पाता था। जिससे वह बहुत ही खिन्न रहता था । बहुत प्रयत्न करने पर भी उसका चिन एकाग्र नहीं हो पाया। अन्त में निराश होकर उसने पहाड़ से कूदकर आत्ममरण का निश्चय कर लिया। महानाम का यह आत्ममरण किसी तरह से समाधिमरण के समकक्ष नहीं है, क्योंकि हताशा की स्थिति में पहाड़ से कूदकर आत्ममरण करना आत्महत्या के समान है और आत्महत्या तथा समाधिमरण में बहुत बड़ा अन्तर हैं। महायान सम्प्रदाय बौद्ध धर्म की एक शाखा है, जिसमें इच्छितमरण के कई उदाहरण मिलते हैं। भावी के शाक्यमुनि ने पूर्व भवों में आत्ममरण किया था। आत्ममरण के लिए उन्होंने अपना शरीर भूखी शेरनी को अर्पित किया था।" वहीं भेषराज के भव में आग में जलकर इच्छितमरण किया था। आत्ममरण की ये दोनों स्थितियाँ समाधिमरण के समकक्ष प्रतीत नहीं होती है। क्योंकि पहली अवस्था में ऐसा सम्भव है कि परोपकार की भावना के वशीभूत होकर भविष्य के शाक्यमुनि ने अपना शरीर भूखी शेरनी को खिला दिया हो। अतः यह समाधिमरण से अलग हटकर कोई अन्य बात हो सकती है। दूसरी अवस्था में भेषराज मं झुलसकर मरता है। देहत्याग के ये दोनों रूप उग्रमरण हैं जबकि समाधिमरण में इस तरह मृत्युवरण के उग्र रूप का निषेध किया गया है। आग चीन, जापान जैसे बौद्ध धर्म को माननेवाले देशों में भी आत्ममरण की परम्परा रही है। चीन में ऐसा विश्वास किया जाता है कि आत्ममरण करने से व्यक्ति अगले जन्म में भगवान् बुद्ध के रूप में जन्म लेगा, वहीं जापान में स्वर्ग प्राप्ति की कामना से आत्ममरण किया जाता है।" चीन में आग में झुलसकर आत्ममरण करने की प्रथा हैं, जिसके लिए ज्वलनशील पदार्थों को इकट्ठा करके अग्निकुण्ड का निर्माण किया जाना है । जब आग पूरी तरह फैल जाती है, तब आत्ममरण करने के लिए व्यक्ति उस अग्निकुण्ड में कूद जाता है। जापान में आत्ममरण का इच्छुक व्यक्ति बौद्ध मन्त्र 'आमीदा वुत्सु' का जाप करते हुए समुद्र में डूबकर आत्ममरण करता है। इसके अलावा हेरेकेरी शिझू तथा ऐतिशी जैसी प्रथा भी आत्ममरण के लिए अपनायी जाती है । हेरेकेरी में किसी धारदार अस्त्र की सहायता से अंग-प्रत्यंग काटकर मरण किया जाता है। शिझू अथवा ऐतिशी विधि से मरण करनेवाले व्यक्ति के मन में यह दृढ़ विश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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