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________________ समाधिमरण और अन्य धार्मिक परम्पराएँ २१ प्रयाग के संगम के पास वटवृक्ष या जड़ के पास अथवा संगम की धारा में डूबकर अपने प्राणत्याग करता है वह विष्णुलोक जाता है।५७ मत्स्यपुराण में आत्ममरण या इच्छित मृत्युवरण पर विस्तृत विवेचन किया गया है। इस पुराण के अनुसार काशी (वर्तमान वाराणसी) में जो इच्छितमरण या आत्मबलिदान किया जाता है, वह अविमुक्त के नाम से जाना जाता है। " काशी भगवान् शंकर का प्रिय क्षेत्र है। यहाँ पर इच्छित मृत्युवरण करनेवालों को स्वयं भगवान् शंकर मुक्ति दिलाते हैं। इस पुराण के अनुसार काशी में व्यक्ति को आग में जलकर, काशी करवट लेकर, पानी में डूबकर, अनशन करके अपने प्राण का त्याग करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति मुक्ति को प्राप्त करता है।५९ शिवपुराण के अनुसार जो व्यक्ति शिव की भक्ति करते हुए आग में जलकर, पहाड़ की चोटौ से गिरकर मरता है वह मुक्ति पा लेता है। व्यक्ति अपने आप से मुक्ति पाने के लिए हवनकुण्ड बनाता है। उसमें अग्नि प्रज्वलित करता है तथा भैरव की प्रतिमा की पूजा करता है। अब व्यक्ति यज्ञ की उस अग्नि में हवन के रूप में स्वयं को समर्पित कर देता है।६० आत्रिस्मृति में भी इच्छितमरण की स्वीकृति प्रदान की गई है। इस स्मृति के अनुसार असाध्य बीमारियों से ग्रसित होने पर, वृद्धावस्था के कारण अत्यधिक जर्जर होने पर या धर्म का सम्पादन करने में असमर्थ होने पर व्यक्ति पहाड़ की ऊँची चोटी से कदकर, आग में जलकर या अगाध जल में समाधि लेकर इच्छित मृत्युवरण कर सकता है।६१ अपरार्क ने ब्रह्मगर्भ, विवश्वत, गार्गेय आदि के विचारों को उद्धृत करते हुए ऐच्छिक देहत्याग का समर्थन किया है। इनका मानना है कि असाध्य व्याधि से पीड़ित शरीर के द्वारा तप करने की अपेक्षा इसका त्याग कराना अधिक श्रेयस्कर है। इस अवस्था में व्यक्ति को किसी तरह का प्रमाद नहीं करना चाहिए। उसे यह भी विचार नहीं करना चाहिए कि उसका देहत्याग शास्त्र सम्मत है अथवा नहीं। अपरार्क ने आदिपुराण से भी सन्दर्भ लेकर यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि ऐच्छिक देहत्याग पाप नहीं है। आदिपुराण में अनशन, अमरकंटक की चोटी से गिरकर, अग्निप्रवेश करके, वटवृक्ष से कूदकर आदि विधियों की सहायता से इच्छितमरण करने का निर्देश है। उपर्युक्त समस्त विधियों की प्रशंसा करते हुए अपरार्क संहिता में कहा गया है कि उक्त विधि से मरण करने से पाप नहीं होता है, बल्कि व्यक्ति उसकी सहायता से जन्म-मरण के बन्धन से छूट जाता है।६२ मनुस्मृति में इच्छित मृत्युवरण का समर्थन करते हुए लिखा गया है कि एक ब्राह्मण पुनः ब्राह्मण कुल में तभी जन्म लेता है जब वह इच्छापूर्वक मृत्युवरण करता है। मृत्युवरण के लिए वह निम्नलिखित साधनों का उपयोग करता है, यथा-नदी की धारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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