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________________ 0 . समाधिमग्ण और अन्य धार्मिक परम्पगएँ स्वच्छापर्वक अग्नि में प्रवेश करके देहत्याग किया और दिव्य लोक को प्राप्त किया था। लक्ष्मण ने भी स्वेच्छापूर्वक मरण किया था। राजा राम के आदेशानुसार लक्ष्मण को देश निकाले का दण्ड मिला। लक्ष्मण राम के आदेशानुसार देश से बाहर जाने को उद्यत हुए, लेकिन राम से अलग रहना लक्ष्मण के लिए असह्य था। इसी कारण लक्ष्मण ने सरयू नदी में जलसमाधि लेकर इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण किया था।“ सीता ने भी इच्छितमरण प्राप्त किया था। सीता एवं लक्ष्मण के इच्छितमरण प्राप्त करने पर राम को भी अपने जीवन से विरक्ति हो गयी। उन्होनें अपने भाई भरत और शत्रुध्न के साथ सग्य नदी में जलसमाधि लेकर इच्छापूर्वक मृत्यु का वरण किया। इस घटना का सुनकर रामराज्य के समस्त नागरिकों ने भी सामूहिक रूप से सरयू नदी के जल में प्रवेश करके इच्छितमरण किया था। ब्राह्मण परम्परा में महाप्रस्थान के रूप में इच्छितमरण का प्रसंग विवेचित है। महाप्रस्थान का अर्थ होता है- दुबारा लौटकर घर या संसार में नहीं आना। महाप्रस्थान लेने से पहले व्यक्ति को तप, यज्ञ तथा इसी तरह के अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने पड़ने हैं। महाप्रस्थान को लेकर श्रीनारायण भट्ट, मित्र मिश्र और श्री लक्ष्मीधर आदि के विचारों में मतैक्य है। इनके अनुसार महाप्रस्थान की महापथ-यात्रा में व्यक्ति को आग में जलकर, जल में डूबकर, पहाड़ या ऊँचाई से कूदकर प्राणत्याग करना चाहिए। वनपर्व में महाप्रस्थान की चर्चा की गयी है और यह लिखा गया है कि व्यनि को महाप्रस्थान व्रत लेना चाहिए तथा उसे गंगा, यमना के संगम स्थल पर जल में डूबकर, आग में जलकर, ऊँचाई से कूदकर देहत्याग करना चाहिए। ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि व्यक्ति को हिमालय की कन्दराओं, पहाड़ों तथा अनेक अन्य तीर्थ स्थलों में प्राणान्त तक भटकते रहना चाहिए, क्योंकि महाप्रस्थान के द्वारा मृत्य प्राप्त करनेवाला व्यक्ति स्वर्गलोक का निवासी होता है। स्वर्गारोहण पर्व में कहा गया है कि जो व्यक्ति सत्य, निष्ठा और साहस के साथ अपने महापथ (पथ) पर चलता जाता है, वह स्वर्गलोक को प्राप्त करता है और जो व्यक्ति ऐसा नहीं करता है वह हिमालय की गहन पहाड़ियों में खो जाता है। जैन ग्रन्थ ऋषिभासित के याज्ञवल्क्य नामक बारहवें अध्याय में इसके विपरीत कहा गया है- गोपथ से जाना चाहिए महापथ से नहीं।४९ यहाँ गोपथ का अर्थ वह मार्ग है जिस पर बहुत कम लोग जाते हैं, जबकि महापथ वह मार्ग है जिसपर जनसाधारण चलते हैं। महाभारत में महापथ का तात्पर्य उस मार्ग से है जिस पर श्रेष्ठ पुरुष चलते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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