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________________ २०८ समाधिमरण लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है तथा उसकी मृत्यु निश्चित रूप से हो जाती है। इस ग्रसित व्यक्ति को जीवित रखने से क्या लाभ? यदि यह जीवित रह भी गया तो कितने समय तक ? अगर वह दीर्घकाल तक जीवित रह गया तो अन्य व्यक्तियों को भी अपने रोग का शिकार बना लेगा। अतः ऐसे व्यक्ति को स्वेच्छा से मरने का अधिकार मिलना चाहिए। अगर वह स्वेच्छापूर्वक अपना प्राणान्त करना चाहता है तो इस कार्य के . लिए उसे नहीं रोकना चाहिए, क्योंकि यह तो समाज सेवा का एक रूप होगा। लेकिन यदि ऐसा हो गया तो समाज में भारी विषमता व्याप्त हो जाएगी। असहाय, वृद्ध एवं निर्धन व्यक्तियों की मृत्यु में एकाएक वृद्धि हो जाएगी। आत्महत्या के प्रकरण बढ़ जायेंगे। इतना ही नहीं अराजकतत्त्वों को अराजकता (हत्या) फैलाने का इससे सुन्दर बहाना और क्या मिलेगा ? स्वेच्छापूर्वक मृत्युवरण की इस चर्चा के बाद निष्कर्ष रूप में कोई एक मत देना सम्भव नहीं है। फिर भी इस दिशा में एक प्रयास अवश्य किया जा सकता है। कुछ अपरिहार्य एवं प्रसंगयुक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखकर व्यक्ति को कुछ सीमा तक इच्छापूर्वक मृत्युवरण करने का अधिकार दिया जा सकता है। ये परिस्थितियाँ हो सकती हैं - १. अत्यधिक शारीरिक दुर्बलता, २ . ब्रह्मचर्य की रक्षा । १. शारीरिक दुर्बलता के कई कारण हो सकते हैं-- अत्यधिक वृद्धावस्था, असाध्य रोग, ऐन्द्रिक एवं स्नायुगत शिथिलता आदि । इन परिस्थितियों में व्यक्ति अपना कार्य ठीक से नही कर पा रहा हो। अपने समस्त कार्यों के लिए किसी अन्य पर आश्रित हो। जिस पर वह आश्रित हो उसने इस स्थिति में उसका साथ छोड़ दिया हो। इसी प्रकार असहाय, अपंग व्यक्ति के सामने रोजी-रोटी तथा अन्य बहुत सी समस्यायें उपस्थित हो गयी हों। और इन समस्याओं की पूर्ति के लिए उसने सभी तरह के प्रयत्न किये, लेकिन सफलता नहीं मिली। ऐसी परिस्थिति में वह व्यक्ति क्या करें ? वह चाह कर भी जीवित नहीं रह पाएगा। तो क्या उसे ऐच्छिक मृत्युवरण की स्वतन्त्रता नहीं है? यदि वह इच्छापूर्वक अपना देहत्याग करता है तो क्या उसका यह देहत्याग गलत है ? नहीं, क्योंकि उसने जीने का भरपूर प्रयास किया। जब उसे यह विदित हो गया कि अब जीना मुश्किल है, जीने का कोई उपयोग नहीं है और यदि वह अन्त में आत्ममरण करता है, तो यह गलत नहीं हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति मृत्युवरण करने के लिए स्वतन्त्र है। २. दूसरी स्थिति है ब्रह्मचर्य या सतीत्व की रक्षा के लिए प्राणत्याग करना । सर्वप्रथम हम यह विचार करें कि किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो गयी है । उस विधवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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