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________________ २०० समाधिमरण करके प्राणत्याग किया करती थीं। जौहर तभी किया जाता था जब यह निश्चित हो जाता था कि अब प्राणरक्षा के बदले अपने धर्म, अपने सतीत्व को खोना पड़ेगा। ऐसी ही विकट परिस्थिति में स्त्रियाँ सामूहिक रूप से अग्निकुंड में जलकर अपने प्राणत्याग करती थीं। समाधिमरण में भी धर्मरक्षार्थ अपने देहत्याग का विधान किया गया है और जौहर में भी इन्हीं परिस्थितियों में देहत्याग किया जाता था। दोनों ही परिस्थितियों में स्वेच्छापूर्वक धर्मरक्षार्थ देहत्याग किया जाता है । किन्तु ऐसा नहीं है कि दोनों समान हैं। इन पर पर्याप्त चिन्तन की अपेक्षा है। जौहर की प्रथा का प्रचलन मुख्य रूप से मध्यकाल में राजस्थान में रहा। इस दिशा में टोड महोदय ने अपनी पुस्तक Annals of Atiquities of Rajasthan में विस्तार से प्रकाश डाला है। वे लिखते हैं कि राजपूत स्त्रियाँ अपमानित और पतित होने की अपेक्षा स्वयं को आग में जलाकर मार देना अधिक उपयुक्त समझती थीं । २६ उस समय आक्रान्ताओं द्वारा छोटे-छोटे राज्यों पर आक्रमण किये जाते थे। विजित प्रदेशों पर विजयी राजा और उनकी सेना द्वारा तरह-तरह के जुल्म ढाये जाते थे। प्रायः जुल्म का शिकार वहाँ की स्त्रियों को होना पड़ता था। उन्हें दैहिक एवं यौन उत्पीड़न की असह्य वेदना के साथ-साथ दासता की अमानुषिक परिस्थितियों का भी समाना करना पड़ता था । अतः उन यातनाओं से बचने के लिए राजपूत पुरुष जीवन के अंतिम क्षण तक संघर्ष करते थे तथा स्त्रियाँ जौहर करके अपने प्राण का त्याग करती थीं। डॉ० उपेन्द्र ठाकुर का मानना है कि जौहर जैसी ही प्रथा का प्रचलन रोम और ग्रीस में भी था। वे लिखते हैं कि वहाँ के निवासी अजातीय अपमान, यौन उत्पीड़न तथा उसी तरह के अन्य विकट परिस्थितियों से बचने के लिए आग में जलकर तथा अमान्य विधियों से अपने प्राणों का त्याग किया करते थे । २७ परन्तु भारतवर्ष में जौहर जैसी प्रथा का इतिहास काफी पुराना माना जाता है। विद्वानों को विश्वास है कि इस परम्परा का मूलाधार दक्ष की पुत्री सती द्वारा किए गये देहत्याग को माना जा सकता है । २८ इसी क्रम में कुछ लोगों का मत है कि भारतवर्ष में जौहर का प्रारंभ सिकंदर-आक्रमण (४थी शती ई. पू.) के समय से माना जा सकता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सिकंदर भारत आक्रमण के समय शिवि, मालव, क्षुद्रक, जैसे छोटे-छोटे गणराज्यों पर आक्रमण करता हुआ आगे बढ़ रहा था। इसी अभिमान के तहत उसने किसी शहर पर भी आक्रमण किया तथा उसे जीत लिया। पराजय की स्थिति तथा अपमान के भय से बचने के लिए वहाँ के २० हजार पुरुषों, स्त्रियों तथा बच्चों ने सामूहिक रूप से आग में जलकर देहत्याग किया। यही सामूहिक आत्मदाह भारत में जौहर के नाम से प्रसिद्ध हुआ । २९ मध्यकाल में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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