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________________ षष्ठ अध्याय समाधिमरण एवं ऐच्छिक मृत्युवरण मृत्युवरण की स्वतन्त्रता का प्रश्न ? क्या समाधिमरण और इच्छापूर्वक मृत्युवरण समान अवधारणा है? यदि हाँ! टो समाधिमरण के अतिचार का प्रसंग गलत हो जाता है, क्योंकि समाधिमरण के अतिचार में जिन-जिन तथ्यों का उद्घाटन हुआ है, वस्तुतः वे व्यक्ति की सभी प्रकार की इच्छाओं का निषेध करने की ओर ही संकेत देते हैं। लेकिन यदि ऐसा ठीक है तो एक व्यावहारिक प्रश्न उठता है कि व्यक्ति किस तरह से सभी तरह की इच्छाओं से मुक्त होकर जीवन जीये। यद्यपि इस समस्या का निराकरण कर पाना संभव नहीं है, फिर भी हमें यह मानकर चलना होगा कि समाधिमरण और इच्छित मृत्युवरण दो भिन्न-भिन्न प्रसंग है। इच्छित मृत्युवरण की कोटि में आत्महत्या को रखा जा सकता है इस सम्बन्ध में पूर्व में विचार किया जा चुका है कि समाधिमरण और आत्महत्या में बहुत बड़ा फर्क है । इच्छितमरण और मरणदान का प्रसंग भी आज चर्चा का विषय बना हुआ है। यद्यपि मरणदान में मृत्यु का कारण कोई अन्य व्यक्ति बनता है, लेकिन इसके पीछे मृत्युदान पानेवाले की सहमती भी रहती है। तो क्या मरणदान और समाधिमरण को समान तथ्य मान लिया जाए। यह भी उचित नहीं है। अतः समाधिमरण और ऐच्छिकमृत्यु के प्रसंग से कई तथ्य जुड़े माने जा सकते हैं। जिन पर विभिन्न दृष्टिकोणों से चिन्तन करना आवश्यक है। भारतवर्ष में सतीप्रथा और जौहर के रूप में इच्छितमरण का प्रसंग स्वीकृत रहा है | जौहर जैसी घटना तो अधिक प्राचीन नहीं है, लेकिन सतीप्रथा एक प्राचीनतम नैतिक क्रिया के रूप में मान्य रही है। जहाँ तक जौहर की बात है तो प्रायः स्त्रियों ने सतीत्व रक्षा हेतु ही इसे स्वीकार किया है, लेकिन सतीप्रथा के साथ यह बात लागू नहीं होतीं । क्योंकि कभी-कभी स्त्रियों की बालात् पति की चिता पर जलने के लिए विवश होना पड़ा है । यही कारण है कि आज भारत में सतीप्रथा जैसी प्राचीन मान्यताओं को अवैध घोषित किया जा चुका है। परन्तु ये दोनों ही परिस्थितयाँ ऐच्छिक मृत्युवरण के ही प्रतिरूप हैं। अब यहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या समाधिमरण के साथ इन दोनों की तुलना भी जा सकती है? क्योंकि इन तीनों ही क्रियाओं में इच्छापूर्वक देहत्याग किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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