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________________ श्रमणाचार : २७५ मोक्ष को पाना उसकी साधना का उद्देश्य है और इसी में जीवन भर की गई उसकी साधना की सफलता निहित है। संलेखना आत्मघात नहीं है : __संलेखना ( समाधिमरण ) के सम्बन्ध में कुछ लोगों की ऐसी धारणा है कि वह एक प्रकार की आत्म-हत्या है किन्तु गहराई से विचार करने पर उनकी यह धारणा नितान्त भ्रामक एवं अतात्त्विक प्रतीत होती है। आचारांग में समाधिमरण को महत्त्व अवश्य दिया गया है किन्तु वहाँ आत्म-हनन के लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है। आत्म-घात के मूल में कषायों के अतृप्त वासनात्मक भावनाओं का वास होता है, जबकि संलेखना के मूल में कषायों का सर्वथा त्याग होता है। इस दृष्टि से आचारांग के शरीर-विमोक्ष (शरीर-त्याग ) के सन्दर्भ में साधक पर किसी भी प्रकार से आत्मघात का आरोप या दोष नहीं लगाया जा सकता है। आचारांग के संलेखना ( समाधिमरण ) विषयक अध्ययन के अनुशीलन से यह स्पष्टतः अभिव्यंजित होता है कि वहाँ संलेखनापूर्वक होने वाली मृत्यु को कर्मक्षयकारी, हितकारी, सुखकारी और कल्याणकारी कहा गया है और साधक मृत्यु के सन्निकट आने पर जब तक शरीर भेद न हो तब तक समाधिमरण के द्वारा मृत्यु की प्रतीक्षा करता है आकांक्षा नहीं । अतः आचारांग के अनुसार संलेखना ( समाधिमरण ) मरणाकांक्षा भी नहीं है । यथा जीवियं णाभिकखेज्जा, मरणं णोवि पत्थए । दुहतोवि ण सज्जेज्जा जीविए मरणे तहा॥ मज्झत्थो णिज्जरापेही समाहिमणुपालए । अन्तो बहि विउस्सिज्ज अज्झत्थं सुद्धमेसए ॥२॥3 भला, जीवन-मरण के प्रति आचारांग की यह मध्यस्थता, अनासक्तता और अनाकांक्षा की यह प्रशस्त धारणा एवं प्रेरणा समाधिमरण के माध्यम से आत्महत्या या आत्महनन का विधान कैसे कर सकती है? वास्तव में समाधिमरण की पृष्ठभूमि में आत्महनन का कोई कारण भी तो दृष्टिगत नहीं होता है जबकि आत्मघात की पृष्ठभूमि में अतृप्त सांवेगिक अवस्थाएँ काम करती हैं। आत्मघाती व्यक्ति तो विभिन्न भावनात्मक मनोग्रन्थियों, कुण्ठाओं, उत्तेजनाओं, कषायों या काम-वासनाओं आदि से घिरा रहता है जबकि संलेखनाधारी साधक इनसे सर्वथा मुक्त रहता है । आत्मघाती व्यक्ति तीव्रतम आवेश में आकर प्राण-त्याग कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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