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________________ १२ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन सर्वथा ममत्व भाव का त्याग कर अनासक्त रहे। पाँचवें उद्देशक में साधक को भिक्षाचरी में समभाव रखने का निर्देश है। वह वस्त्र-पात्र एवं आहार के प्रति आसक्ति न रखे। उसे सदोष चिकित्सा का भी त्याग करना चाहिए। छठा उद्देशक बन्ध-मोक्ष के परिज्ञान एवं उपदेश कुशलता से सम्बद्ध है। तृतीय अध्ययन (शीतोष्णीय ) : इस अध्ययन का नाम शीतोष्णोय है। यहाँ 'शीत' और 'उष्ण' शब्द आध्यात्मिक अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं। 'शीत' और 'उष्ण' ये दोनों शब्द परोषह से सम्बन्धित हैं । जो परीषह अनुकूल हैं, वे शीत कहलाते हैं, और जो प्रतिकूल हैं वे उष्ण कहे जाते हैं। नियुक्तिकार ने कहा है कि बाईस परीषहों में 'स्त्री' और 'सत्कार' शीत परीषह तथा शेष बीस परीषह प्रतिकूल होने से उष्ण हैं। इस अध्ययन में कहा है कि साधना के पथ पर चलने वाले साधक को चाहिए कि वह अनुकूल या प्रतिकल परीषहों ( कष्टों या परिस्थितियों ) के उपस्थित होने पर तनिक भी विचलित न हो । प्रत्येक परिस्थिति में समत्वभाव रखते हुए साधना में निरन्तर सजग रहे । उसे सुख में प्रसन्न और दुःख में विषण्ण नहीं होना चाहिए। ____ इस अध्ययन में चार उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में कहा गया है कि जो प्रसूप्त या प्रमत्त है, वह अमुनि है और जो अप्रमत्त है या जाग्रत है, वह मुनि है। द्वितीय उद्देशक में प्रसुप्त या प्रमत्त व्यक्ति के दुःखों का निरूपण है। तृतीय उद्देशक में यह प्रेरणा दी गई है कि साधक के लिए मात्र देह-दमन ही पर्याप्त नहीं है, प्रत्युत उसे अपने चित्त को विशुद्ध या निर्मल बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। चतुर्थ उद्देशक में संयम-साधना के लिए कषाय-त्याग का उपदेश है। चतुर्थ अध्ययन ( सम्यक्त्व ) : सम्यक्त्व का अर्थ है-विशुद्ध या निर्मल दृष्टि । यह मुक्ति-महत्त्व का प्रथम सोपान है । जीवाजीवादि तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप पर श्रद्धा होने से आत्मा प्राणि-मात्र को आत्मोपम्यदष्टि से देखता है। वह उनका अहित नहीं करता, उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचाता। इसी अहिंसा की भावना को शुद्ध, नित्य और सनातन धर्म कहा गया है । इस अध्ययन में चार उद्देशक हैं-प्रथम उद्देशक में अहिंसा का सम्यक् निरूपण है । द्वितीय उद्देशक आस्रव-परिस्रव ( संवर-निर्जरा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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