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________________ २२२ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन व्यक्ति की आज्ञा माँगे बिना तथा प्रतिलेखन और प्रमार्जन किये बिना उसे खोलकर घर में प्रवेश न करे और न निष्क्रमण करे। कैसे प्रवेश करे-गृहस्थ की आज्ञा लेकर प्रतिलेखन व प्रमार्जन करे, तदनन्तर उस दरवाजे को खोलकर प्रवेश करे तथा निकले ।७० गृहस्थ के घर खड़े रहने के लिये अयोग्य स्थान : भिक्षा हेतु गया हुआ मुनि गृहस्थ के घर की द्वार-शाखा को पकड़ कर खड़ा न रहे। इसी तरह जिस स्थान पर बरतनों को मांज-धोकर पानी गिराया जा रहा है, जहाँ पीने का पानी बहाया जाता हो या बह रहा हो वहाँ खड़ा न रहे। जहाँ स्नानघर, पेशाबघर या शौचालय हो यदि उन स्थानों पर उसकी दृष्टि पड़ती हो तो वहाँ भी खड़ा न रहे । दरवाजे के सामने खड़ा न रहे। वहाँ क्या नहीं देखे-गृहस्थ के गवाक्ष आदि को, दुबारा संस्कारित की गई दीवारों को, दो दीवारों की संधि को एवं जलघर को भुजाओं से, या अंगुली से निर्देश करके अथवा अपने शरीर को ऊपर-नीचे करके न तो स्वयं देखे और न दूसरों को दिखाये ।' भिक्षा ग्रहण करते समय शारीरिक संकेत का निषेध : साधु-साध्वी को अंगुली चलाकर, अंगुली से भय दिखाकर, अंगुली से शरीर को खुजलाते हुए अथवा गृहस्थ की प्रशंसा कर आहार पानी की याचना नहीं करना चाहिए और भिक्षादि न देने पर कठोर वचन भी नहीं कहना चाहिए।७२ प्रथम श्रुतस्कंध में सूत्रकार ने 'न मे देइ कुप्पिज्जा थोवं लधुं न खिसए' कहकर इसी बात को व्यक्त किया है। भिक्षा हेतु मुनि कब जाये और कब न जाये : साधु-साध्वी को यह पता लगे कि अभी गाएँ दुही जा रही हैं, अशनादि आहार तैयार हो रहा है, तथा उस आहार में से अभी किन्हों दूसरे याचकों को नहीं दिया गया है, तो साधु-साध्वी को उस घर में आहारादि के लिए नहीं जाना चाहिए। जब मुनि यह जान ले कि गाएँ दुहा जा चुकी हैं, अशनादि आहार तैयार हो चुका है और उस आहार में से दूसरों को दे दिया गया है तब मुनि को उस घर में भिक्षा हेतु जाना चाहिए ।७४ ।। संखडि ( सामूहिक भोजन ) में जाने के निषिद्ध स्थान : जिस दिशा में संखडि हो रही हो, उस दिशा में भिक्षा हेतु नहीं जाना चाहिए। यथा---गाँव, नगर, खेट, कर्बट, मंडप, पतन, आकर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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