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________________ २२० : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन मुनि अपने द्वारा लाया हुआ अशनादि आहार अन्य तीर्थी साधुओं को न तो स्वयं दे और न किसी से दिलवावे, अर्थात् उनके साथ आहारादि का व्यवहार न करे । भिक्षा के लिये अयोग्य कुल : ___ जहाँ नित्यपिण्ड, अग्रपिण्ड, नित्य भाग या नित्य चतुर्थ भाग दिया जाता है, उन कुलों में साधु-साध्वी को भिक्षा हेतु नहीं जाना चाहिए । इसी तरह क्षत्रिय कुलों में, उनसे भिन्न राजकुलों में, एकदेशवासी राजाओं के कूलों में, राज प्रवेश दण्डपाशिक कूलों में और राजवंशस्थ कूलों में निमंत्रण करने पर या नहीं करने पर भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए।१२ भिक्षा के लिये योग्य कुल : साधु-साध्वी को उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, क्षत्रियकुल, इक्ष्वाकु कुल, हरिवंशकुल, गोपालादि कुल, वैश्यकुल, नापितकुल, वद्धर्की ( बढ़ई) कुल, ग्रामरक्षककुल, तन्तुवायकुल तथा इसी प्रकार के और भी अनिन्दित एवं अहित कुलों में भिक्षा हेतु जाना चाहिए । गृहस्थ के घर भिक्षा हेतु न जाने के अवसर : ___ अष्टमी के पौषधव्रत के महोत्सव एवं अर्द्धमासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, चातुर्मासिक, पंच एवं षट्मासिक महोत्सव, ऋतु, ऋतु सम्बन्धी एवं ऋतु परिवर्तन महोत्सव हों और वहाँ बहुत से शाक्यादि भिक्षु, ब्राह्मण, अतिथि आदि को अशनादि चतुर्विध भोजन कराया जा रहा हो-ऐसे प्रसंगों पर मुनि का भिक्षा हेतु नहीं जाना चाहिये ।।४ इसी तरह रुद्र, स्कन्ध, इन्द्र, मुकुन्दबलदेव महोत्सव, देव, भूत व यक्ष महोत्सव, नाग, स्तप, चैत्य, वृक्ष, गिरि, गुफा, कूप, तालाब, नदी, सरोवर, समुद्र सम्बन्धी महोत्सव, पितृपिण्ड या मृतकपिण्ड से सम्बन्धित उत्सवों पर शाक्यादि भिक्षु, कृपण आदि भोजन कर रहे हों और वह भोजन अभी पूरा उपयोग में नहीं ले लिया गया हो तो मुनि को वहाँ जाकर आहार ग्रहण नहीं करना चाहिये । उनके भोजन करके चले जाने के बाद गहस्थ को भोजन करते देखकर मुनि वहाँ जा सकता है या गृहस्थ दे तो (प्रासुक) निर्दोष जानकर वह आहार ग्रहण कर सकता है।६५ भिक्षा हेतु निषिद्ध मार्ग : जिस मार्ग में मदोन्मत बैल, भैंस, मनुष्य, घोड़े, हाथी, सिंह, व्याघ्र भेड़िया, चोता, रोछ, अष्टापद, गोदड़, बिलाव, कुत्ते, सूअर, कोकंतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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