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________________ . नैतिक प्रमाद और आचारांग : ११९ १०४. सुत्तपिटक, ३।३७।२७. १०५. धम्मपद, १०११३, १९।९५. १०६. गीता, ६।२९-३२. १०७. मनुस्मृति, ६।६०. १०८. हितोपदेश ( मित्रलाभ ), श्लोक-१२-१३, पृ० ८. १०९. समयसार-जोवाजीवाधिकार गा. २, एवं प्रवचनसार-ज्ञयतत्त्वा धिकार गा० २. ११०. आनन्दघन चौबीसी-अरनाथ जिनस्तवन गा० २. १११. अध्यात्मसार, ३१. ११२. श्री उपाध्यायशोविजयजी, अध्यात्मोपनिषद्, केशरबाई ज्ञानभण्डार स्थापकसंघवी नगीनदास करमचन्द प्रथम आवृत्ति, वि० सं० १९९४, २६. ११३. गीता, ३।२. ११४. आचाराङ्ग, ११३. ११५. वही, १।६।५. ११६. वही, १।६।५. ११७. वही, १।१।४. ११८. आचारांग, ११११७. ११९. "पुरिसा तुममेब तुमंमित्त किं बहियामित्त मिच्छसि" । वही, १।३।२. १२०. वही, १।३।२. १२१. छिदिज्जसोयं लहुमय गामी, वही, १।३।२. १२२. वही, ११६॥३. १२३. उत्तराध्ययन, १।१५. १२४. धम्मपद, १४५. १२५. आचाराङ्ग, १।९।१, श५॥३, १।६।१. १२६. 'जे अणण्णदंसी' । वही, १।२।६. १२७. वही, १।४।३. १२८. वही, ११४४. १२९. एवं अणोमदंसी नि सण्णे पावेहि कम्मेहिं वही, १।३।२। देखें १।३।२ पर शीलांक, पत्रांक १४७-१४८. १३०. वही, शीलांक टी० पत्रांक-१४४-१४७. १३१. वही, १।३।१. १३२. वही, १।४।३. १३३. वही, १।४।३ १३४. आचारांग शी० टी० ११५।४ पत्रांक, १९७. १३५. आचाराङ्ग, १।३।१. १३६. वही, १।३।१. १२७. वही, १।४।४. १३८. वही, ११५।६, १।२।२. १३९. वही, १।३।१. १४०. वही, ११३१४. १४१. वही, १।४।३. १४२. वही, १।४।३. १४३. वही, १।३।३ एवं १।५।६. १४४. जहोयराओय-वही, १।४।१ _ 'पुरिसा, परमचक्खू विपक्कमा' वही, १।५।२. उठ्ठिए णो पमायए वही, १।५।२. १४५. वही, २३।३. १४६. वही, १।३।३. १४७. वही, १२।६. १४८. अरइ आउट्टे से मेहावी खणंसिमुक्के वही, १।२।२ एवं विमुक्काहु ते जणा जे जणा पारगमिणो वही, १।२।२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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