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________________ [ ४६ ] सत्य को आग्रह का चश्मा उतार कर देखने का प्रयास किया जाये । पार्श्वनाथ और बौद्ध परम्परा देवसेन नामक दिगम्बर जैन आचार्य ने ९ वीं शताब्दी में लिखे अपने ग्रन्थ दर्शनसार में यह कल्पना की है कि बुद्ध पार्श्वनाथ की निर्ग्रन्थ परंपरा के पिहितास्रव नामक आचार्य के पास दीक्षित हुए थे। सम्भवतः देवसेन की इस कल्पना का आधार यह हो कि बौद्ध ग्रन्थ मज्झिमनिकाय के महासिंहनादसुत्त में बुद्ध के साधना काल का जो वर्णन है; उसमें बुद्ध यह कहते हैं कि मैं नग्न रहता था, केश लोचन करता था, हथेली पर भिक्षा लेकर खाता था, निमन्त्रण को स्वीकार नहीं करता था, कभी एक दिन छोडकर तो कभी दो दिन तो कभी सप्ताह और पखवाड़े में एक दिन भोजन करता था, अनेक वर्षों की धूल से मेरे शरीर पर मैल की परतें जम गई थी। "मैं बड़ी सावधानी से आता-जाता था, पानी की बूंदों के प्रति भी मेरी तीव्र दया रहती थी।181 बुद्ध का यह आचार निश्चित रूप से निम्रन्थ परम्परा के आचार के साथ मेल खाता है। यह बात भी सत्य है कि बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के पूर्व उस युग के अनेक लोकमान्य एवं प्रतिष्ठित साधकों के पास जाकर उनकी साधना पद्धतियों को सीखा था। यह अलग बात है कि वे उनमें से किसी भी साधना पद्धति से पूर्णतया सन्तुष्ट न हो सके थे और अपने नवीन मार्ग की तलाश में निकल पड़े। चूँकि उस युग में पार्श्वनाथ की परम्परा भी एक लोक-विश्रुत परम्परा थी और संभव है कि उन्होंने उस परम्परा के किसी आचार्य से भी सम्पर्क स्थापित किया हो और तदनुरूप आचरण किया हो। किन्तु जिस प्रकार बुद्ध के आलारकालाम, उदकरामपुत्त आदि के पास उनकी साधना पद्धति को सीखने का उल्लेख है वैसी सूचना निर्गन्थों या पिहितास्रव के सम्बन्ध में नहीं मिलती। अतः इसे एक क्लिष्ट कल्पना कहना ही उचित होगा। यह भी सम्भव है कि यह विवरण महावीर की निम्रन्थ परम्परा की साधना को निरर्थक बताने की दृष्टि से बाद में जोड़ा गया हो । क्योंकि पापित्यों का आचार इतना कठोर नहीं था। यह आचार मुख्यतः आजीवको और महावीर की परम्परा से सम्बद्ध लगता है, पाश्वं की नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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