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________________ ६७ चम्पूयुग थे । आचण्ण पुलिगेरे के निवासी थे। 'वसुधैकबान्धव' उपाधिधारी चमूपति रेचण की सत्प्रेरणा से कवि के पिता केशवराज तथा उनके मित्र तिक्कण चामण, इन दोनों ने मिलकर वर्धमानपुराण लिखना प्रारंभ किया था। परन्तु बीच में ही केशवराज के देहावसान हो जाने के कारण यह कार्य आगे नहीं बढ़ा। बाद में रेचण की प्रेरणा से आचण्ण ने इसे पूर्ण किया । ___ आचण्ण को 'वाणीवल्लभ' नामक उपाधि प्राप्त थी। उपर्युक्त चमूपति रेचण पहले कलचुरियों के यहाँ और बाद में होयसल शासक वीर बल्लाल (ई० सन् ११७३-१२२०) के यहाँ मंत्री जैसे उत्तरदायित्वपूर्ण उच्च पद पर सम्मानपूर्वक आसीन थे (आरसिकेरे शिलालेख ०७) । मद्रास प्राच्य ग्रंथकोशलयस्थ एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि आचण्ण के गुरु नन्दियोगीश्वर ई. सन् ११८९ में विद्यमान थे। विद्वानों ने आवण्ण का समय ई० सन् ११९५ निर्धारित किया है। कवि ने अपनी रचना में पूर्व कवियों में श्री विजय, गजांकुश, गुणवर्म, नागवर्म, असग, हंप, पोन्न, अग्गल और बोप्प की स्तुति की है । कवि पार्श्व ने श्री गुणवर्म, कीर्तिकलागर्भ, जैनागमगर्भ, जगद्गुरु, प्रसन्नगुण, मृदुहृदय आदि विशेषणों से आचण्ण की बड़ी प्रशंसा की है। इसमें सन्देह नहीं है कि ये एक प्रौढ़ कवि हैं । इनकी रचना में १२वीं शताब्दी के अन्य चंपू काव्यों की अपेक्षा शब्दालंकार अत्यधिक है । आचण्ण का वर्धमानपुराण अंतिम तीर्थंकर वर्धमान (महावीर स्वामी) के चरित्र से सम्बन्धित है। यह २६ आश्वासों में विभक्त है। तीथंकर वर्धमान के चरित्र के सम्बन्ध में लिखी गई कन्नड कृतियों में यह ग्रंथ प्रथम है। आचण्ण ने अपनी दूसरी कृति श्री पदाशीति में पंचपरमेष्ठियों की महिमा गायी है। इसमें ९४ कन्द पद्य हैं। यह भक्तिरस से परिपूर्ण एक सुन्दर रचना है। ग्रंथ का बंध प्रौढ़ है। इसकी प्रशंसा कवि ने स्वयं की है। महावीरचरित्रप्रतिपादक स्वतंत्र संस्कृत कृतियों में महाकवि असग (विक्रम संवत् ११वीं शताब्दी) का वर्धमानपुराण तथा आचार्य सकलकीर्ति (विक्रम संवत् १५वीं शताब्दी) का वर्धमानचरित्र ये दोनों पर्याप्त प्रसिद्ध हैं। वर्धमानपुराण सोलापुर से और वर्धमानचरित्र का मात्र हिन्दी अनुवाद बंबई से प्रकाशित हुआ है । कन्नड ग्रंथों में आचण्ण के इस वर्धमानपुराण के अतिरिक्त कवि पद्म (विक्रमीय ११वीं शताब्दी ) का एक अन्य वर्धमानपुराण भी उपलब्ध है । साहित्य की दृष्टि से कवि पद्म का ग्रंथ भी एक सुन्दर रचना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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