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________________ ५४ कन्नड जैन साहित्य का इतिहास विहार किए गए देशों में सर्वप्रथम करहाट ( कोल्हापुर ) का नाम आया है ( आश्वास १३, पद्य १०३ ) कर्णपार्य को करहाट के शिलाहार वंशी राजा विजयादित्य के मन्त्री लक्ष्म या लक्ष्मण का संरक्षण प्राप्त था। इस लिए विद्वानों का अनुमान है कि कोल्हापुर ही कर्णपार्य का जन्मस्थल होगा। पर बलिष्ठ प्रमाणों के अभाव में यह मानना समुचित नहीं है कि कोल्हापुर ही कवि का जन्मस्थल है, क्योंकि समवसरण के विवरण में कवि ने सर्वप्रथम करहाट का नाम जो लिया है, उसका और भी कोई अदृष्ट कारण हो सकता है । अतः उसके वंश, माता-पितादि के सम्बन्ध में इस समय कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अब कर्णपार्य के अमरकाव्य नेमिनाथ-पुराण के बारे में भी दो शब्द कहना आवश्यक है। इस पुराण में देशनिवेशवर्णन, पुण्डरी किणी नगर का ऐश्वर्यवर्णन, राज्यवैभववर्णन और देवगतिवर्णन ( आश्वास १) चित्ताकर्षक हैं। इसी प्रकार भगवान् नेमिनाथ के गर्भावतरण एवं जन्माभिषेक ( आश्वास ८) वैराग्य, दान, तप, केवलज्ञानोत्पत्ति एवं समवसरण वर्णन (आश्वास १३) और निर्वाण का वर्णन भी मार्मिक है। साथ ही प्रद्युम्नकुमार, पाण्डव एवं बलदेव की तपस्या का वर्णन ( आश्वास १४ ) भी विशेष चित्ताकर्षक हैं । जहाँ तक रस का सम्बन्ध हैं जैन काव्य एवं पुराणों का प्रधान रस शान्त रस है । परन्तु यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि आस्वादकों को एक ही रस से सन्तोष नहीं हो सकता। इसीलिए शान्तरस के साथ-साथ जैनपुराणों एवं काव्यों में शृगारादि शेष रस भी यथास्थान प्रकरणानुकूल उचित मात्रा में निबद्ध कर दिए गए है। महाकवि नागचन्द्र का कथन है कि जिस प्रकार सिद्धरस से लौह सुवर्ण बन जाता है उसी प्रकार शान्तरस के सम्पर्क से पाप प्रवृत्ति के जनक शृंगारादि रस भी पुण्य का कारण बन जाते हैं। प्रस्तुत काव्य में भी शान्तरस एवं उसका स्थायीभाव निर्वेद विशेष रूप से वणित है । प्रथम. आश्वास में नागदत्त इभकेतु और प्रीतिमति-चिन्तागति के वैराग्य प्रसंगों में तथा द्वितीय आश्वास में अर्हद्दास अमितगामी अमिततेज और सुप्रतिष्ठ के वैराग्य प्रसंगों में शान्तरस, तृतीय आश्वास में शान्तनु और पाण्डु-कुन्ति के प्रसंगों में शृगाररस, सुप्रतिष्ठ के उपसर्ग में करुण रस की अभिव्यक्ति. हुई है। चतुर्थ तथा पंचम आश्वास में श्मशान के वर्णन में बीभत्सरस, विवाहों के प्रसंगों में शृंगाररस तथा षष्ठ आश्वास में कंस के चरित्र में मात्सर्यादि भावों के साथ-साथ वीररस की सृष्टि की गई है। सप्तम आश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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