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________________ पंपयुग २९ अजितसेन के पादमूल में समाधिमरणपूर्वक शरीरत्याग किया।' प्रारम्भ से ही गंगराज्य कीजैनधर्म से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। श्रवणबेळगोळ के शिलालेख नं० ५४ (६७) एवं गंगवंश के अन्यान्य दानपत्रों से निर्विवादरूप से यह सिद्ध है कि मुनिसिंहनन्दी ही गंगवंश के संस्थापक थे । इसे गोम्मटसारवृत्ति के रचयिता अभयचन्द्र विद्यचक्रवर्ती भी स्वीकार करते हैं। श्रीधराचार्य __ यह बेलुवल नाडान्तर्गत नरिंगुन्द के निवासी थे। इन्होंने अपने को 'विप्रकुलोत्तम' बतलाया है। अभी तक तो इनका 'जातकतिलक' नामक एक ज्योतिष ग्रन्थ ही उपलब्ध हो सका है, जो कि प्रकाशित हो चुका है । यद्यपि जातक तिलक के अन्तिम पद्य से पता चलता है कि इन्होंने 'चन्द्रप्रभचरित' भी रचा था। परन्तु यह ग्रन्थ अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। कवि का कहना है कि विद्वानों ने मुझसे कहा कि 'अभी तक कन्नड में किसी ने ज्योतिष ग्रन्थ नहीं लिखा है, इसलिए तुम जातकतिलक अवश्य लिखो।' इस प्रकार विद्वानों की प्रेरणा से ही मैंने जातकतिलक की रचना की है। इससे सिद्ध होता है कि कन्नड में ज्योतिष सम्बन्धी ग्रंथ लिखने वालों में श्रीधराचार्य प्रथम हैं। इस बात की पुष्टि बाहुबलि ( लगभग १२६. ई० की 'नागकुमार-कथा' से भी होती है। कन्नडकविचरिते के मान्य लेखक के मत से श्रीधराचार्य का काल ई० सन् १०४९ एवं शा० शक ९७१ है। श्रीधराचार्य को गद्यपद्यविद्याधर और बुधजनमित्र ये दो उपाधियां प्राप्त थीं। इन्होंने अपने को विधुविशदयशोनिधि, काव्यधर्मजिनधर्मगणितधर्ममहाम्भोनिधि, बुधमित्र, निजकुलाम्बुजाकर मित्र, रसभावसमन्वित, सुभग, अखिलवेदी आदि अनेक विशेषणों से संबोधित किया है। ऊपर कहा जा चुका है कि जातकतिलक एक ज्योतिष ग्रंथ है। यह कंद वृत्तों में लिखा गया है। इसमें २४ अधिकार हैं। यद्यपि कवि ने अपने ग्रन्थ की उत्कृष्टता कई पद्यों में बतलाई है तथापि स्थानाभाव के कारण उन पद्यों को यहां पर उद्धृत करना अपेक्षित नहीं है। श्रीधराचार्य ने ज्योतिष का प्रयोजन इस प्रकार बतलाया है "भवबद्ध शुभाशुभ कमविपाक का फल जानने के लिए ज्योतिर्ज्ञान अंधेरी कोठरी में रखी हुई वस्तुओं को स्पष्ट दिखाने वाले प्रदीप के समान है।' १. विशेष जिज्ञासु 'सम्मति सन्देश' (दिल्ली), वर्ष १०, अंक ७, में प्रकाशित 'गंगनरेश मारसिंह का समाधिमरण' शीर्षक मेरा लेख देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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