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________________ पंपयुग १५ सृष्टि के सौभाग्य से बन जाती है।' कवि नागचन्द्र की यह उक्ति पंप पर ही चरितार्थ होती है। पंपसदृश सरस्वती की साधना में प्रवृत्त कवि विरल ही है। ___ कन्नड साहित्य का आदि कवि पंप ईसा की दसवीं सदी का प्रतिभासंपन्न विशिष्ट रचनाकार है । उसे नवयुग का प्रवर्तक भी माना जाता है । इसी युग में प्रबंधशैली का उत्कर्ष हुआ। अतः इस काल को कन्नड साहित्य का स्वर्ण युग कहा जाता है। लगभग दसवीं सदी के मध्य काल से लेकर दो सदियों तक महाकवि एवं आदिकवि पंप का कन्नड साहित्य पर अमिट प्रभाव था। अतः इस युग का नाम 'पंपयुग' पड़ गया है। बारहवीं सदी के अंत में कन्नड साहित्य में कवि हरिहर का प्रादुर्भाव होता है और उसके साथ ही कन्नड साहित्य का 'नवयुग' आरंभ होता है । पंप के असाधारण कविव्यक्तित्व का प्रभाव इस युग में भी अवश्यक रहा है, फिर भी इन दोनों के बीच का काल ही कन्नड में पंपयुग के नाम से विख्यात है। इसी से आदिकवि पंप के कृतित्व की महिमा को जाना जा सकता है। __ पंप की दो प्रधान रचनाएं हैं-आदिपुराण और विक्रमार्जुन विजय । ये दोनों क्रमशः तीन तथा छः महीनों में पूरी हुई थीं। आदिपुराण तीर्थंकर की जीवनी से सम्बन्ध रखती है। इसमें आदि तीथंकर का जीवनचरित्र विस्तार से अंकित है। कई जन्मों में उन्होंने जो भोग का अनुभव किया था, उसकी स्मृति से वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि भोगलालसा का कोई अन्त नहीं है । न स्वर्ग में, न मर्त्यलोक में ही तृष्णा की पूर्ति हो पाती है। यह तृष्णा बुझे कैसे ? इन सब बातों का गहरा विचार करते हुए वे कैवल्य पद की प्राप्ति के लिए तपस्या करने वन की ओर निकल पड़ते हैं। इसमें आदिनाथ के सुपुत्र भरत और बाहुबली के प्रसंग भी बड़े भावपूर्ण ढंग से अंकित किये गये हैं। आदिनाथ की दीक्षा के उपरान्त भरत सम्राट् हुआ। अपने चक्ररत्न के प्रताप से वह छहो खण्डों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में समर्थ हुआ। परन्तु उसे अपने भाइयों का विरोध भी सहना पड़ा। भरत ने उन्हें अपने अधिकार में करना चाहा । परन्तु वे राज्यभोग से पूर्ण विरक्त होकर तपसाधना में लीन हो गये । भाइयों का यह वैराग्य भरत को विस्मयकारक प्रतीत हुआ। बाहुबली से लड़ते समय भरत दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध तथा मल्लयुद्ध तीनों में परास्त हुआ । अन्त में उसने बाहुबली पर चक्ररत्न का प्रयोग किया । इससे बाहुबली का कोई अहित नहीं हुआ। परन्तु बड़े भाई के इस व्यवहार से खिन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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