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________________ १५ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास . आदि प्रसिद्ध हैं। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय में जगत्सेठ, सिंघी आदि विशिष्ट परिवार थे जो राजसेठ माने जाते थे और राज्यशासन में उनका बड़ा प्रभाव था। राजकीय प्रतिष्ठा के साथ-साथ इस काल में जैन वैश्य बड़ा ही सुपठित और प्रबुद्ध था। जैनाचार्यों के समान ही वह भी साहित्यसेवा में रत था। इस काल में जैन गृहस्थों ने अनेकों ग्रन्थों की रचना भी को है। अपभ्रंश महाकाव्य पद्मचरित के रचयिता स्वयम्भू , तिलकमंजरी जैसे पुष्ट गद्यकाव्य के प्रणेता धनपाल, कन्नड चामुण्डरायपुराण के लेखक चामुण्डराय, नरनारायणानन्द महाकाव्य के रचयिता वस्तुपाल, धर्मशर्माभ्युदयकार हरिश्चन्द्र, पंडित आशाधर, अहंहास, कवि मंडन आदि अनेक जैन गृहस्थ ही थे। जैनाचार्यों द्वारा अनेक ग्रन्थ प्रणयन कराने, उनकी प्रतियों को लिखाकर वितरण करने तथा अनेक शास्त्रभण्डारों के निर्माण कराने में जैन वैश्य वर्ग का प्रमुख हाथ रहा है। (ई) साहित्यिक अवस्था--आलोच्य युग के पूर्व गुप्तकाल संस्कृत साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है। उस समय तक वाल्मीकि रामायण, महाभारत, अश्वघोष के काव्य बुद्धचरित एवं सौन्दरनन्द तथा कालिदास के रघुवंश, कुमारसंभव आदि एवं प्राकृत के गाथासप्तशती एवं सेतुबंध आदि बन चुके थे और एक विशिष्ट काव्यात्मक शैली का प्रादुर्भाव हो चुका था तथा संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश में उत्तरोत्तर उच्चकोटि की रचनाएँ होने लगी थीं । तब तक ब्राह्मणों के मुख्य पुराण भी अन्तिम रूप धारण कर रहे थे। इस युग में काव्यों को शास्त्रीय पद्धति पर बाँधने के लिए भामह, दण्डि, रुद्रट प्रभृति विद्वानों के काव्यालंकार, काव्यादर्श आदि ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। रीतिबद्ध शैली पर इस युग में अनेक काव्यों की सृष्टि होने लगी थी जिनमें भारविकृत किरातार्जुनीय, माघकृत शिशुपालवध, श्रीहर्षकृत नैषधीय-चरित बृहत्त्रयी के नाम से विख्यात हैं। शास्त्रीय पद्धति पर काव्य की अनेक विधाओं जैसे गद्यकाव्य, चम्पू, दूतकाव्य, अनेकार्थकाव्य, नाटक आदि की सृष्टि इस युग में हुई । जैन विद्वानों ने भी इस युग की माँग को देखा। उनका धर्म वैसे तो त्याग और वैराग्य पर प्रधान रूप से बल देता है। उनके शुष्क उपदेशों को बिना प्रभावोत्पादक ललित शैली के कौन सुनने को तैयार था ? जैन मुनियों को शृङ्गार आदि कथाओं को सुनने और सुनाने का निषेध था पर श्रावक वर्ग को साधारणतया इस प्रकार की कथाओं में विशेष रसोपलब्धि होती थी। युग की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002099
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 6
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, Kavya, & Story
File Size11 MB
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