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________________ व्याकरण हैम-लधुवृत्तिदुण्ढिका ( हैमलघुवृत्तिदीपिका): 'सि० श०' पर मुनिशेखर मुनि ने ३२०० श्लोक प्रमाण 'हैमलघुवृत्तिढुंढिका' अपर नाम 'हैमलघुवृत्तिदीपिका' की रचना की है। इसकी वि० सं० १४८८ में लिखी हुई हस्तलिखित प्रति मिलती है। लघुव्याख्यानदुण्ढिका : 'सि० श०' परं ३२०० श्लोक-प्रमाण 'लघुव्याख्यानढुंढिका' की किसी जैनाचार्य की लिखी हुई प्रति सूरत के ज्ञानभण्डार में है। दुण्ढिका-दीपिका: ___ आचार्य हेमचन्द्रसूरिरचित 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' के अध्यापन निमित्त नियुक्त किये गये कायस्थ अध्यापक काकल, जो हेमचन्द्रसूरि के समकालीन थे और आठ व्याकरणों के वेता थे, उन्होंने 'सि० श० पर ६००० श्लोकपरिमाण एक वृत्ति की रचना की थी जो 'लघुवृत्ति' या 'मध्यमवृत्ति के नाम से प्रसिद्ध थी। 'जिनरत्नकोश' पृ० ३७६ में इस लघुवृत्ति को ही 'ढुंटिकादीपिका' कहा गया है । यह चतुष्क, आख्यात, कृत्, तद्धित विषयक है। बृहद्वृत्ति-सारोद्धार : 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' की बृहद्वृत्ति पर सारोद्धारवृत्ति नाम से किसी ने रचना की है। इसकी दो हस्तलिखित प्रतियाँ वि० सं० १५२१ में लिखी हुई मिलती हैं। जिनरत्नकोश, पृ० ३७६ में इसका उल्लेख है। बृहवृत्ति-अवचूर्णिकाः ___ 'सि० श०' पर जयानन्द के शिष्य अमरचन्द्रसूरि ने वि० सं० १२६४ में 'अवचूर्णिका' की रचना की है। इसमें ७५७ सूत्रों की बृहद्वृत्ति पर अवचूरि है; शेष १०७ सूत्र इसमें नहीं लिये गये हैं। आचार्य कनकप्रभसूरिकृत 'लघुन्यास' के साथ बहुत अंशों में यह अवचूरि मिलती है। कई बाते अमरचन्द्र ने नवीन भी कही हैं। अवचूर्णिका (पृ० ४.५ ) में कहा है कि प्रथम के सात अध्याय चतुष्क, आख्यात, कृत् और तद्धित-इन चार प्रकरणों में विभक्त हैं। संधि, नाम, कारक और समास-इन चारों का समुदायरूप 'चतुष्क' है, इसमें १० पाद १. यह ग्रन्थ 'देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार फंड' की भोर से छपा है। ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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