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________________ १८२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास होरा नाम महाविद्या वक्तव्यं च भवद्धितम् । ज्योतिर्ज्ञानकरं सारं भूषणं बुधपोषणम् ।। 'होरा' के कई अर्थ होते हैं : १. होरा याने ढाई घटी अर्थात् एक घण्टा । २. एक राशि या लग्न का अर्धभाग । ३. जन्मकुण्डली। ४. जन्मकुण्डली के अनुसार भविष्य कहने की विद्या अर्थात् जन्मकुण्डली का फल बतानेवाला शास्त्र । यह शास्त्र लग्न के आधार पर शुभ-अशुभ फलों का निर्देश करता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में हेमप्रकरण, दाम्यप्रकरण, शिलाप्रकरण, मृत्तिकाप्रकरण, वृक्षप्रकरण, कर्पास-गुल्म-वल्कल-तृण-रोम-चर्म-पटप्रकरण, संख्याप्रकरण, नष्टद्रव्यप्रकरण, निर्वाहप्रकरण, अपत्यप्रकरण, लाभालाभप्रकरण, स्वरप्रकरण, स्वप्नप्रकरण, वास्तुविद्याप्रकरण, भोजनप्रकरण, देहलोहदीक्षाप्रकरण, अंजनविद्याप्रकरण, विषविद्याप्रकरण आदि अनेक प्रकरण हैं। ये प्रकरण कल्याणवर्मा की 'सारावली' से मिलते-जुलते हैं। दक्षिण में रचना होने से कर्णाटक प्रदेश के ज्योतिष का इसपर काफी प्रभाव है । बीच-बीच में विषय स्पष्ट करने के लिये कन्नड़ भाषा का भी उपयोग किया गया है। चन्द्रसेन मुनि ने अपना परिचय देते हुए इस प्रकार कहा है : आगमः सदृशो जैनः चन्द्रसेनसमो मुनिः। केवली सदृशी विद्या दुर्लभा सचराचरे ।। यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है। यन्त्रराज आचार्य मदनसूरि के शिष्य महेन्द्रसूरि ने ग्रहगणित के लिये उपयोगी 'यन्त्रराज' नामक ग्रंथ की रचना शक सं० १२९२ (वि० सं० १४२७ ) में की है । ये बादशाह फिरोजशाह तुगलक के प्रधान सभापंडित थे। इस ग्रन्थ की उपयोगिता बताते हुए स्वयं ग्रन्थकार ने कहा है : यथा भटः प्रौढरणोत्कटोऽपि शनैर्विमुक्तः परिभूतिमेति । तद्वन्महाज्योतिनिस्तुषोऽपि यन्त्रेण हीनो गणकस्तथैव ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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