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________________ ज्योतिष पढमणुओगे कासी जिणचक्किदसारचरियपुत्वभवे । कालगसूरी बहुयं लोगाणुओगे निमित्तं च ॥ गणहरहोरा (गणधरहोरा): 'गणहरहोरा' नामक यह कृति किसी अज्ञात नामा विद्वान् ने रची है। इसमें २९ गाथाएँ हैं। मंगलाचरण में 'नमिण इंदभूह' उल्लेख होने से यह किसी जैनाचार्य की रचना प्रतीत होती है। इसमें ज्योतिष-विषयक होरासंबंधी विचार है। इसकी ३ पत्रों की एक प्रति पाटन के जैन भंडार में है। प्रश्नपद्धति: 'प्रश्नपद्धति' नामक ज्योतिषविषयक ग्रंथ की हरिश्चन्द्रगणि ने संस्कृत में रचना की है। कर्ता ने निर्देश किया है कि गीतार्थचूडामणि आचार्य अभयदेवसूरि के मुख से प्रश्नों का अवधारण कर उन्हीं की कृपा से इस ग्रंथ की रचना की है। यह ग्रन्थ कर्ता ने अपने ही हाथ से पाटन के अन्नपाटक में चातुर्मास की अवस्थिति के समय लिखा है। जोइसदार (ज्योतिौर ): ___ 'जोइसदार' नामक प्राकृत भाषा की २ पत्रों की कृति पाटन के जैन भंडार में है। इसके कर्ता का नाम अज्ञात है। इसमें राशि और नक्षत्रों से शुभाशुभ फलों का वर्णन किया गया है। जोइसचक्कवियार (ज्योतिष्चक्रविचार): ___ जैन ग्रन्थावली (पृ० ३४७ ) में 'जोइसचक्कवियार' नामक प्राकृत भाषा की कृति का उल्लेख है । इस ग्रन्थ का परिमाण १५५ ग्रन्थान है। इसके कर्ता का नाम विनयकुशल मुनि निर्दिष्ट है । भुवनदीपक : 'भुवनदीपक' का दूसरा नाम 'ग्रहभावप्रकाश' हैं।' इसके कर्ता आचार्य पद्मप्रभसूरि हैं। ये नागपुरीय तपागच्छ के संस्थापक हैं। इन्होंने वि० सं० १२२१ में 'भुवनदीपक' की रचना की। १. प्रहभावप्रकाशाख्यं शास्त्रमेतत् प्रकाशितम् । जगद्भावप्रकाशाय श्रीपद्मप्रभसूरिभिः ॥ २. आचार्य पद्मप्रभसूरि ने 'मुनिसुव्रतचरित' की रचना की है, जिसकी वि० सं० १३०४ में लिखी गई प्रति जैसलमेर-भंडार में विद्यमान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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