SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलङ्कार १०५ अभिप्राय यह है कि जब वादी देवसूरि ने 'स्याद्वादरत्नाकर' की रचना की उसके पहले ही अम्बाप्रसाद ने अपने तीनों ग्रन्थों की रचना पूरी कर ली थी। चूकि 'स्याद्वादरत्नाकर' अभी तक पूरा प्राप्त नहीं हुआ है इसलिए उसकी रचना का ठीक समय अज्ञात है । 'कल्पलता' ग्रन्थ भी अभी तक नहीं मिला है। कल्पलतापल्लव ( सङ्केत): 'कल्पलता' पर महामात्य अम्बाप्रसाद-रचित 'कल्पलतापल्लव' नामक वृत्तिग्रन्थ था परन्तु वह अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। इसलिये उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। कल्पपल्लवशेष (विवेक): 'कल्पलता' पर 'कल्पपल्लवशेष' नामक वृत्ति की ६५०० श्लोक-परिमाण हस्तलिखित प्रति जैसलमेर के भंडार से प्राप्त हुई है। इसके कर्ता भी महामात्य अम्बाप्रसाद ही हैं। इसका आदि पद्य इस प्रकार है : यत् पल्लवे न विवृतं दुर्बोधं मन्दबुद्धेश्चापि । क्रियते कल्पलतायां तस्य विवेकोऽयमतिसुगमः॥ इस ग्रन्थ में अलंकार, रस और भावों के विषय में दार्शनिक चर्चा की गई है। इसमें कई उदाहरण अन्य कवियों के हैं और कई स्वनिर्मित हैं। संस्कृत के अलावा प्राकृत के भी अनेक पद्य है। 'कल्पलता' को विबुधमंदिर, 'पल्लव' को मंदिर का कलश और 'शेष' को उसका ध्वज कहा गया है। वाग्भटालङ्कार : ___ 'वाग्भटालंकार' के कर्ता वाग्भट हैं। प्राकृत में उनको बाहड कहते थे । वे गुर्जरनरेश सिद्धराज के समकालीन और उनके द्वारा सम्मानित थे। उनके पिता का नाम सोम था और वे महामंत्री थे। कई विद्वान् उदयन महामंत्री का दूसरा नाम सोम था, ऐसा मानते हैं। यह बात ठीक हो तो ये वाग्भट वि० सं० ११७९ से १२१३ तक विद्यमान थे। १. बंभण्डसुत्तिसंपुर-मुत्तिममणिणोपहाससमुह ब्व । सिरिबाहड त्ति तणमो भासि बुहो तस्स सोमस्स ॥ (१. १४८, पृ७२) २. 'प्रबन्धचिन्तामणि' शृंग २२, श्लोक ४७२, २०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy