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________________ कोश ३. कल्पसूत्र पर 'कल्पमञ्जरी' नामक टीका ( अपने सतीर्थ्य श्रीसार मुनि के साथ, सं० १६८५), ४. अनेकशास्त्रसारसमुच्चय, ५. एकादिदशपर्यन्तशब्द-साधनिका, ६. सारस्वतवृत्ति, ७. शब्दार्णवव्याकरण (ग्रन्थान, १७०००), ८. फलवर्द्धिपार्श्वनाथमाहात्म्यमहाकाव्य ( २४ सर्गात्मक ), ९. प्रीतिषट्त्रिंशिका ( सं० १६८८ )। शब्दचन्द्रिका : इस कोश ग्रन्थ के कर्ता का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसकी १७ पत्रों की हस्तलिखित प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर के संग्रह में है । यह कृति शायद अपूर्ण है । इसका प्रारंभ इस प्रकार है : ध्यायं ध्यायं महावीरं स्मारं स्मारं गुरोर्वचः। शास्त्रं दृष्ट्वा वयं कुर्मः बालबोधाय पद्धतिम् ॥ पत्रलिवनस्याद्वादमतं ज्ञात्वा वरं किल । मनोरमां वयं कुर्मः बालबोधाय पद्धतिम् ।। इन श्लोकों के आधार पर इसका नाम 'बालबोधपद्धति' या 'मनोरमाकोश' भी हो सकता है। हस्तलिखित प्रति के हाशिये में 'शब्द-चन्द्रिका' उल्लिखित है । इसी से यहां इस कोश का नाम 'शब्द-चन्द्रिका' दिया गया है । इसमें शब्द का उल्लेखकर पर्यायवाची नाम एक साथ गद्य में दे दिये गये हैं। विद्यार्थियों के लिए यह कोश उपयोगी है । यह ग्रन्थ छपा नहीं है। सुन्दरप्रकाश-शब्दार्णव : नागोरी तपागच्छीय श्री पद्ममेरु के शिष्य पद्मसुन्दर ने पांच प्रकरणों में 'सुन्दरप्रकाश-शब्दार्णव' नामक कोश-ग्रंथ की रचना वि० सं० १६१९ में की है। इसकी हस्तलिखित प्रति उस समय की याने वि. सं. १६१९ की लिखी हुई प्राप्त होती है । इस कोश में २६६८ पद्य हैं। इसकी ८८ पत्रों की हस्तलिखित प्रति सुजानगढ़ में श्री पनेचंदजी सिंघी के संग्रह में है। पं० पद्मसुन्दर उपाध्याय १७ वीं शती के विद्वान् थे। सम्राट अकबर के साथ उनका घनिष्ठ संबंध था। अकबर के समक्ष एक ब्राह्मण पंडित को शास्त्रार्थ में पराजित करने के उपलक्ष में अकबर ने उन्हें सम्मानित किया था तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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