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________________ ६४ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास उक्तिप्रत्यय: मुनि धीरसुन्दर ने 'उक्तिप्रत्यय' नामक औक्तिक व्याकरण की रचना की है, जिसकी हस्तलिखित प्रति सूरत के भंडार में है। यह ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है। उक्तिव्याकरण: 'उक्तिव्याकरण' नामक ग्रंथ की रचना किसी अज्ञात विद्वान् ने की है। उसकी हस्तलिखित प्रति सूरत के भंडार में है। प्राकृत-व्याकरण: स्वाभाविक बोल-चाल की भाषा को 'प्राकृत' कहते हैं।' प्रदेशों की अपेक्षा से प्राकृत के अनेक भेद हैं । प्राकृत व्याकरणों से और नाटक तथा साहित्य के ग्रन्थों से उन-उन भेदों का पता लगता है। भगवान् महावीर और बुद्ध ने बाल, स्त्री, मन्द और मूर्ख लोगों के उपकारार्थ धर्मज्ञान का उपदेश प्राकृत भाषा में ही दिया था। उनके दिये गये उपदेश आगम और त्रिपिटक आदि धर्मग्रन्थों में संगृहीत हैं। संस्कृत के नाट्यसाहित्य में भी स्त्रियों और सामान्य पात्रों के संवाद प्राकृत भाषा में ही निबद्ध हैं। जैन और बौद्ध साहित्य समझने के लिये और प्रान्तीय भाषाओं का विकास जानने के लिये प्राकृत और अपभ्रंश भाषा के ज्ञान की नितांत आवश्यकता है। उस आवश्यकता को पूरी करने के लिये प्राचीन आचार्यों ने संस्कृत भाषा में ही प्राकृत भाषा के अनेक ग्रन्थ निर्मित किये हैं। प्राकृत भाषा में कोई व्याकरणग्रंथ प्राप्त नहीं है। प्राकृत भाषा के वैयाकरणों ने अपने पूर्व के वैयाकरणों की शैली को अपनाकर और अपने अनुभूत प्रयोगों को बढ़ाकर व्याकरणों की रचना की है। इन्होंने अपने-अपने प्रदेश की प्राकृत भाषा को महत्त्व देकर जिन व्याकरणग्रन्थों की रचना की है वे आज उपलब्ध हैं। १. सकलजगजन्तूनां व्याकरणादिभिरनाहितसंस्कारः सहजो वचनव्यापारः प्रकृतिः, तत्र भवं सैव वा प्राकृतम् । २. बाल-स्त्री-मूढ-मूर्खाणां नृणां चारित्रकाशिणाम् । अनुग्रहार्थ तत्वज्ञः सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002098
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages336
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Literature, & Grammar
File Size12 MB
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