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________________ ७४ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चरित्र का संक्षिप्त चित्रण करने के बाद नियुक्तिकार ने क्षेत्र-काल आदि शेष द्वारों का वर्णन किया है । सामायिक का प्रकाश जिनेन्द्र भगवान् महावीर ने वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन पूर्वाह्न के समय महसेन उद्यान में किया अतः इस क्षेत्र और काल में सामायिक का साक्षात् निर्गम है। अन्य क्षेत्र और काल में सामायिक का परंपरागत निर्गम है।' इसके बाद पुरुष तथा कारणद्वार का वर्णन है। कारणद्वार की चर्चा करते समय संसार और मोक्ष के कारणों की भी चर्चा की गई है । इसके पश्चात् यह बताया गया है कि तीर्थकर क्योंकर सामायिक-अध्ययन का उपदेश देते हैं तथा गणधर उस उपदेश को किसलिए सुनते हैं ? इससे आगे प्रत्यय अर्थात् श्रद्धाद्वार की चर्चा है । लक्षणद्वार में वस्तु के लक्षण की चर्चा की गई है । नयदार में सात मूल नयों के नाम तथा लक्षण दिए गए हैं तथा यह भी बताया गया है कि प्रत्येक नय के सैकड़ों भेद-प्रभेद हो सकते हैं । जिनमत में एक भी सूत्र अथवा उसका अर्थ ऐसा नहीं है जिसका नयदृष्टि के बिना विचार हो सकता हो । इसलिए नयविशारद का यह कर्तव्य है कि वह श्रोता की योग्यता को दृष्टि में रखते हुए नय का कथन करे । तथापि इस समय कालिक श्रुत में नयावतारणा ( समवतार ) नहीं होती है। ऐसा क्यों ? इसका समाधान करते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि पहले कालिक का अनुयोग अपृथक् था किन्तु आर्य वज्र के बाद कालिक का अनुयोग पृथक कर दिया गया । इस प्रसंग को लेकर आचार्य ने आर्य वज्र के जीवन-चरित्र की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया है और अन्त में कहा है कि आर्य रक्षित ने चार अनुयोग पृथक् किये। इसके बाद आर्य रक्षित का जीवन चरित्र भी संक्षेप में दे दिया गया हैं।" आर्य रक्षित का मातुल गोष्ठामाहिल सप्तम निह्नव हुआ। भगवान् महावीर के शासन में उस समय तक छः निह्नव और हो चुके थे। सातों निह्नवों के नाम इस प्रकार हैं : १. जमालि, २. तिष्यगुप्त, ३. आषाढ़, ४. अश्वमित्र, ५. गंगसूरि, ६. षडुलक, ७. गोष्ठा माहिल । इनके मत क्रमशः ये हैं : १. बहुरत, २. जीवप्रदेश, ३. अव्यक्त, ४. समुच्छेद, ५. द्विक्रिया, ६. त्रिराशि, ७ अबद्ध । इसके बाद आचार्य अनुमत द्वार का व्याख्यान करते हैं और फिर सामायिक के स्वरूप की चर्चा प्रारंभ करते हैं । नयदृष्टि से सामायिक की चर्चा करने के बाद उसके तीन भेद करते हैं : सम्यक्त्व, श्रुत और चारित्र । संयम, नियम और तप में जिसकी आत्मा रमण करती है वही सामायिक का सच्चा अधिकारी है । जिसके १. गा० ७३५. २. गा० ७३७-७६०. ३. गा० ७६४. ४. गा० ७७५. ५. गा० ७७६-७. ६. गा० ७७९-७८१. ७. गा० ७९०-७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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