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________________ प्रास्ताविक ही एक शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने एक और टिप्पण लिखा है जिसे प्रदेशव्याख्या-टिप्पण कहते हैं । आवश्यक-टिप्पण का ग्रन्थमान ४६०० श्लोक-प्रमाण है। अनुयोगद्वारवृत्ति : __ प्रस्तुत वृत्ति अनुयोगद्वार के मूलपाठ पर है । इसमें सूत्रों के पदों का सरल एवं संक्षिप्त अर्थ है । यत्र-तत्र संस्कृत श्लोक भी उद्धृत किए गए है। वृत्ति का -ग्रन्थमान ५९०० श्लोक-प्रमाण है । विशेषावश्यक भाष्य-बृहद्वृत्ति : प्रस्तुत वृत्ति, जिसे शिष्यहितावृत्ति भी कहते हैं, मलधारी हेमचन्द्र की बृहत्तम कृति है । इसमें विशेषावश्यकभाष्य के विषय का सरल एवं सुबोध प्रतिपादन है। दार्शनिक चर्चाओं की प्रधानता होते हुए भी वृत्ति की शैली में क्लिष्टता का अभाव दृष्टिगोचर होता है । इस टीका के कारण विशेषावश्यकभाष्य के पठन-पाठन में अत्यधिक वृद्धि हुई है, इसमें कोई संदेह नहीं। आचार्य ने प्रारंभ में ही लिखा है कि जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणविरचित विशेषावश्यकभाष्य पर -स्वोपज्ञवृत्ति तथा कोट्याचार्यविहित विवरण के विद्यमान रहते हुए भी प्रस्तुत वृत्ति लिखो जा रही है क्योंकि ये दोनों टोकाएँ अति गभीर वाक्यात्मक एवं संक्षिप्त होने के कारण मंद बुद्धिवाले शिष्यों के लिए कठिन सिद्ध होती हैं । वृत्ति के अन्त की प्रशस्ति में बताया गया है कि यह वृत्ति राजा जयसिंह के राज्य में वि. सं. ११७५ की कार्तिक शुक्ला पंचमी के दिन समाप्त हुई । वृत्ति का ग्रन्थमान २८००० श्लोक-प्रमाण है । नेमिचन्द्रसरिकृत उत्तराध्ययनवृत्ति : नेमिचन्द्रसूरि का दूसरा नाम देवेन्द्र गणि है । इन्होंने वि. सं. ११२९ में उत्तराध्ययनसूत्र पर एक टोका लिखो। इस टीका का नाम उत्तराध्ययन-सुखबोधावृत्ति है । यह वृत्ति वादिवेताल शान्तिसूरिविहित उत्तराध्ययन-शिष्यहितावृत्ति के आधार पर लिखी गई है । वृत्ति की सरलता एवं सुबोधता को दृष्टि में रखते हुए इसका नाम सुबोधा रखा गया है। इसमें उदाहरणरूप अनेक प्राकृत कथानक हैं । वृत्ति के अन्त को प्रशस्ति में उल्लेख है कि नेमिचन्द्राचार्य बृहद्गच्छोय उद्योतनाचार्य के शिष्य उपाध्याय आम्रदेव के शिष्य हैं । इनके गुरु-भ्राता का नाम मुनिचन्द्रसूरि है जिनकी प्रेरणा ही प्रस्तुत वृत्ति की रचना का मुख्य कारण है । वृत्ति-रचना का स्थान अणहिलपाटक नगर (पाटन ) में सेठ दोहडि का घर है । वृत्ति की समाप्ति का समय वि. सं. ११२९ है । इसका ग्रन्थमान १२००० श्लोक-प्रमाण है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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