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________________ ३८ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विशेषावश्यकभाष्य-स्वोपज्ञवृत्ति का भी उल्लेख किया है । प्रस्तुत विवरण का ग्रंथमान १३७०० श्लोकप्रमाण है। आचार्य गंधहस्तिकृत शस्त्रपरिज्ञाविवरण : ___ आचार्य गंधहस्ती ने आचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा पर जो विवरण लिखा था वह अनुपलब्ध है। आचार्य शीलांक ने अपनी कृति आचारांगविवरण के प्रारंभ में गंधहस्तिकृत प्रस्तुत विवरण का उल्लेख किया है एवं उसे अति कठिन बताया है। प्रस्तुत गंधहस्ती तथा तत्त्वार्थभाष्य पर बृहद्वृत्ति लिखने वाले सिद्धसेन एक ही व्यक्ति है। इनके गुरु का नाम भास्वामी है। इनका समय विक्रम की सातवीं और नवीं शती के बीच में कहीं है। इन्होंने अपनी तत्त्वार्थभाष्य-बृहद्वृत्ति में वपुबंधु, धर्मकीर्ति आदि. बौद्ध विद्वानों का उल्लेख किया है जो सातवीं शती के पहले के नहीं हैं। दूसरी ओर आचार्य शीलांक ने गन्धहस्ती का उल्लेख किया है। शीलांक नवीं शती के टीकाकार हैं। शीलांकाचार्यकृत टीकाएं : ___ आचार्य शीलांक के विषय में कहा जाता है कि इन्होंने प्रथम नौ अंगों पर टीकाएँ लिखी थों । वर्तमान में इनकी केवल दो टीकाएँ उपलब्ध हैं : आचारांगविवरण और सूत्रकृतांगविवरण । इन्होने व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवती) आदि पर भी टीकाएँ अवश्य लिखी होंगी, जैसा कि अभयदेवसूरिकृत व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति से फलित होता है । आचार्य शीलांक, जिन्हें शीलाचार्य एवं तत्त्वादित्य भी कहा जाता है, विक्रम की नवीं-दसवीं शती में विद्यमान थे । आचारांगविवरण : यह विवरण आचारांग के मूलपाठ एवं उसकी नियुक्ति पर है। विवरण शब्दार्थ तक ही सीमित नहीं है। इसमें प्रत्येक सम्बद्ध विषय का सुविस्तृत व्याख्यान है । यत्र-तत्र प्राकृत एवं संस्कृत उद्धरण भी है । प्रारंभ में आचार्य ने गंधहस्तिकृत शस्त्रपरिज्ञा-विवरण का उल्लेख किया है एवं उसे कठिन बताते हुए आचारांग पर सुबोध विवरण लिखने का संकल्प किया है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के षष्ठ अध्ययन की व्याख्या के अन्त में विवरणकार ने बताया है कि महापरिज्ञा नामक सप्तम अध्ययन का व्यवच्छेद हो जाने के कारण उसका अतिलंघन करके अष्टम अध्ययन का व्याख्यान प्रारंभ किया जाता है । अष्टम अध्ययन के षष्ठ उद्देशक के विवरण में ग्राम, नकर ( नगर ), खेट, कर्बट, मडम्ब, पत्तन, द्रोणमुख, आकर, आश्रम, सन्निवेश, नैगम, राजधानी आदि का स्वरूप बताया गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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