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________________ मलयगिरिविहित वृत्तियाँ ४०१ प्रस्तुत पीठिका में इन दस प्रकार के प्रायश्चित्तों का विशेष विवेचन किया गया है। यही विवेचन जीतकल्पभाष्य आदि ग्रंथों में भी उपलब्ध है। प्रायश्चित्तदान की विधि के व्याख्यान के साथ पीठिका का विवरण समाप्त होता है। आगे की वृत्ति में प्रथमादि उद्देशों का सूत्र, नियुक्ति एवं भाष्यस्पर्शी विवेचन है। प्रथम उद्देश के प्रथमसूत्रान्तर्गत 'पडिसेवित्ता' का व्याख्यान करते हुए भाष्यकार ने बताया है कि प्रतिसेवना दो प्रकार की है : मूल प्रतिसेवना और उत्तर प्रतिसेवना। मूल प्रतिसेवना पाँच प्रकार की है और उत्तर प्रतिसेवना दस प्रकार की है। इनमें से प्रत्येक के पुनः दो भेद हैं : दपिका और कल्पिका : मूलुत्तरपडिसेवा मूले पंचविहे उत्तरे दसहा । एक्केक्का वि य दुविहा दप्पे-कप्पे य नायव्वा ॥भा० ३८॥ इस गाथा का व्याख्यान करते हुए वृत्तिकार लिखते हैं : 'प्रतिसेवना नाम प्रतिसेवना सा च द्विधा मलोत्तरत्ति, पदैकदेशे पदसमुदायोपचारात् मूलगुणातिचारप्रतिसेवना, उत्तरगुणातिचारप्रतिसेवना च । तत्र मुले पंचविहत्ति मुलगणातिचारप्रतिसेवना पञ्चविधा पञ्चप्रकारा, मूलगुणातिचाराणां प्राणातिपातादीनां पञ्चविधत्वाद्, उत्तरे त्ति उत्तरगुणातिचारप्रतिसेवना दशधा दसप्रकारा, उत्तरगुणानां दशविधतया तदतिचाराणामपि दशविधत्वात् ते च दशविधा उत्तरगुणा दशविध प्रत्याख्यानं तद्यथा-अनागतमतिक्रान्तं कोटीसहितं नियन्त्रितं, साकारमनाकारं परिमाणकृतं निरवशेषं साङ्केतिकमद्धाप्रत्याख्यानं च । अथवा इमे दशविधा उत्तरगुणाः। तद्यथा-पिण्डविशोधिरेक उत्तरगुणः, पञ्चसमितयः पञ्च उत्तरगुणाः, एवं षट् तपोबाह्य षट्प्रभेदं सप्तम उत्तरगुणः, अभ्यन्तर षट्प्रभेदमष्टमः, भिक्षुप्रतिमा द्वादश नवमः, अभिग्रहा द्रव्यक्षेत्रकालभावभेदभिन्ना दशमः। एतेषु दशविधेषूत्तरगुणेषु याऽतिचारप्रतिसेवना सापि दशविधेति । एक्केक्का वि य दुविहा इत्यादि एकैका मूलगुणातिचारप्रतिसेवना उत्तरगुणातिचार प्रतिसेवना च प्रत्येक सप्रभेदा द्विविधा द्विप्रकारा ज्ञातव्या। तद्यथा-द कल्पे च दपिका कल्पिका चेत्यर्थः । तत्र या कारणमन्तरेण प्रतिसेवना क्रियते सा दपिका, या पुन : कारणे सा कल्पिका।" प्रतिसेवना दो प्रकार की है। मूलगुणातिचारप्रतिसेवना और उत्तरगुणातिचारप्रतिसेवना । मूलगुणातिचारप्रतिसेवना मूलगुणों के प्राणातिपातादि पांच प्रकार के अतिचारों के कारण पाँच प्रकार की है। उत्तरगुणातिचारप्रतिसेवना दस प्रकार की १. द्वितीय विभाग, पृ० १३-४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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