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________________ षष्ठ प्रकरण शीलांककृत विवरण आचार्य शीलांक शीलाचार्य एवं तत्त्वादित्य के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि इन्होंने प्रथम नौ अंगों पर टोकाएँ लिखी थी, किन्तु वर्तमान में केवल आचारांग और सूत्रकृतांग को टीकाएँ ही उपलब्ध है। आचारांग-टीका की विभिन्न प्रतियों में भिन्न-भिन्न समय का उल्लेख है । तो किसी में शक स० ७७२ का उल्लेख है तो किसी में शक सं० ७८४ का; किसी में शक सं० ७९८ का उल्लेख हैं तो किसी में गुप्त सं० ७७२ का। इससे यही सिद्ध होता है कि आचार्य शीलांक शक की आठवीं अर्थात् विक्रम की नवीं-दसवीं शताब्दी में विद्यमान थे । आचारांगविवरण : प्रस्तुत विवरण मूल सूत्र एवं नियुक्ति पर है। विवरणकार ने अपना विवरण शब्दार्थ तक ही सीमित नहीं रखा है अपितु प्रत्येक विषय का विस्तारपूर्वक विवेचन किया है। अपने वक्तव्य की पुष्टि के लिए बीच-बीच में अनेक प्राकृत एवं संस्कृत उद्धरण भी दिये हैं। भाषा, शैली, सामग्री आदि सभी दृष्टियों से विवरण को सुबोध बनाने का प्रयत्न किया है । विवरण प्रारम्भ करने के पूर्व आचार्य ने स्वयं इस बात की ओर संकेत किया है। प्रारम्भ में विवरणकार ने जिनतीर्थ की महिमा बताते हुए उसकी जय बोली है तथा गन्धहस्तिकृत शस्रपरिज्ञाविवरण को अति कठिन बताते हुए आचारांग पर सुबोध विवरण लिखने का संकल्प किया है : १. निर्वृतिकुलीनश्रीशोलाचार्येण तत्त्वादित्यापरनाम्ना वाहरिसाधुसहायेन कृता टीका परिसमाप्तेति । -आचारांग-टीका, प्रथम श्रुतस्कन्ध का अन्त. २. प्रभावकचरित्र : श्रीअभयदेवसूरिप्रबन्ध, का. १०४-५. ३. A History of the canonical Literature of the Jainas, पृ० १९७. ४.(अ) जिनहंस व पार्श्वचन्द्र की टीकाओं सहित-रायबहादुर धनपतसिंह, कलकत्ता, वि० सं० १९३६. (आ) आगमोदय समिति, सूरत, वि० सं० १९७२-३. (इ) जैनानन्द पुस्तकालय, गोपीपुरा, सूरत, सन् १९३५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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