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________________ ३४२ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तदनन्तर प्रज्ञापना के विषय, कर्तृत्व आदि का वर्णन किया गया है । जीवप्रज्ञापना और अजीवप्रज्ञापना का वर्णन करते हुए एकेन्द्रियादि जीवों का विस्तारपूर्वक व्याख्यान किया गया है । यहाँ तक प्रथम पद को व्याख्या का अधिकार है। द्वितीय पद की व्याख्या में पृथ्वीकाय, अपकाय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय तथा द्वीन्द्रियादि के स्थानों का वर्णन किया गया है। ___ तृतीय पद की व्याख्या में कायाद्यल्पबहुत्व, वेद, लेश्या, इन्द्रिय आदि दृष्टियों से जीवविचार, लोकसम्बन्धी अल्प-बहुत्व, आयुर्बन्ध का अल्पबहुत्व, पुद्गलाल्पबहुत्व, द्रव्याल्पबहुत्व, अवगाढाल्पबहुत्व आदि का विचार किया गया है। चतुर्थ पद की व्याख्या में नारकों की स्थिति का विवेचन है। पंचम पद की व्याख्या में नारकपर्याय, अवगाह, षट्स्थानक, कर्मस्थिति और जीवपर्याय का विश्लेषण किया गया है। षष्ठ और सप्तम पद के व्याख्यान में आचार्य ने नारकसम्बन्धी विरहकाल का वर्णन किया है। ___ अष्टम पद की व्याख्या में आचार्य ने संज्ञा का स्वरूप वताया है। संज्ञा का अर्थ है अभोग अथवा मनोविज्ञान । संज्ञा के स्वरूप का विवेचन करते हुए आचार्य कहते हैं ; 'तत्र संज्ञा आभोग इत्यर्थः, मनोविज्ञानं इत्यन्ये, संज्ञायते वा अनयेति संज्ञा-वेदनीयमोहनीयोदयाश्रया ज्ञानदर्शनावरणक्षयोपशमाश्रया च विचित्रा आहारादिप्राप्तये क्रियेत्यर्थः, सा चोपाधिभेदाद् भिद्यमाना दश प्रकारा भवति, तद्यथा-आहारसंज्ञेत्यादि....'। इसके बाद आहारादि दस प्रकार की संज्ञा का स्वरूप बताते हुए ग्रंथकार कहते हैं : 'तत्र क्षुद्वेदनीयोदयाद् कवलाद्याहारार्थ पुद्गलोपादानक्रियैव संज्ञायते अनयेत्याहारसंज्ञा तथा भयवेदनीयोदयाद् भयोङ्क्रांतस्य दृष्टिवदनविकाररोमांचोझेदार्था विक्रियैव संज्ञायतेऽनयेति भयसंज्ञा, तथा पुवेदोदयान्मथुनाय स्त्र्यालोकनप्रसन्नवदनमनःस्तम्भितोरुवेपथुप्रभृतिलक्षणा विक्रियैव संज्ञायते अनयेति (मैथुनसंज्ञा, चारित्रमोहविशेषोदयात् धर्मोपकरणातिरिक्ततदतिरेकस्य वा आदित्साक्रियैव) परिग्रहसंज्ञा, तथा क्रोधोदयात् तदाशयगर्भा पुरुषमुखनयनदंतच्छदस्फुरणचेष्टेव संज्ञायतेऽनयेति क्रोधसंज्ञा, तथा मनोदयादहंकारात्मिकोत्सेकादिपरिणतिरेव संज्ञायतेऽनयेति मानसंज्ञा, तथा मायोदयेनाशुभसंक्लेशादनृतभाषणादिक्रियैव संज्ञायतेऽनयेति मायासंज्ञा, तथा लोभोदयाल्लालसान्वितासचित्तेतरद्रव्यप्रार्थनैव संज्ञायतेऽनयेति लोभसंज्ञा, तथा लोभोदयोपशमा१. पृ० ६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
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