SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशवेकालिकचूर्णि २९३ तिवायविग्धपरिहारिणा य निज्जूढमेव, अतो विगते काले विकाले दसकमज्ज्ञयणाण कर्तामिति दसवेकालियं । चउपोरिसितो सज्झायकाले तम्मि विगते वि पढिज्जतीति विगयकालियं दसवेकालियं । दसमं वा वेतालियो पजाति वृत्तहि नियमितमज्झयणमिति दसवेतालियं । " षड्जीवनिका नामक चतुर्थ अध्ययन के अर्थाधिकार का विचार करते हुए चूर्णिकार कहते हैं : जीवाजीवाहिगमो गाहा । पढमो जीवाहिगमो, अहिगमो - परि ण्णाणं १ ततो अजीवाधिगमो २ चरित्तधम्मो ३ जयणा ४ उवएसो ५ धम्मफलं । तस्स चत्तारि अणुओगद्दारा जहा आवस्सए । नामनिप्फण्णो भण्णति—३ दशकालिक के अंत की दो चूलाओं -- रतिवाक्यचूला और विविक्तचर्या - चूला की रचना का प्रयोजन बताते हुए आचार्य कहते हैं : धम्मे धितिमतो खुड्डियायारोवत्थितस्स विदित्तछक्कायवित्थरस्स एसणीयादिधारितसरीरस्स समत्तायारावत्थितस्स वयणविभागकुसलस्स सुप्पणिहितजोगजुत्तस्स विणीयस्स दसमज्झयणोपवण्णितगुणस्स समत्त - सकलभिक्खुभावस्स विसेसेण थिरीकरणत्थं विवित्तचरियोवदेसत्थं च उत्तरतं तमुपदिट्ठे चूलितादुतं रतिवक्कं विवित्तचरिया चूलिता य । तत्थ धम्मे थिरीकरणत्था रतिवक्कणामधेया पढमचूला भणिता । इदाणि विवित्तचरियोवदेसत्था बितिया चूला भाणितव्वा । * अन्त में चूर्णिकार ने अपनी शाखा का नाम, अपने गुरु का नाम तथा अपना खुद का नाम बताते हुए निम्न गाथाएँ लिखकर चूर्णि की पूर्णाहुति की है : वीरवरस्स भगवतो तित्थे कोडीगणे सुविपुलम्मि । गुणगणवइराभस्सा वेरसामिस्स साहाए ॥ १ ॥ महरिसिसरिससभावा भावाऽभावाण मुणितपरमत्था । रिसिगुत्तखमासमणो खमासमाणं निधी आसि ॥ २ ॥ १. पृ० ७-८. २. नियुक्तिगाथा - जीवाजीवाहिगमो चरित्तधम्मो तदेव जयणा य । उवएसो धम्मफलं छज्जीवणियाइ अहिगारा ॥ ३. पृ० १४६-७. ४. पृ० २९७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002096
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages520
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy