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________________ तृतीय प्रकरण दशवैकालिक . दसवेयालिय-दशवैकालिक' जैन आगमों का तीसरा मूलसूत्र है। शय्यंभव' इसके कर्ता हैं। शय्यंभव ब्राह्मण थे और वे जैनधर्म में दीक्षित हो गये थे। शय्यंभव के दीक्षा लेते समय उनकी स्त्री गर्भवती थी। दीक्षा ग्रहण करने के बाद उनके एक पुत्र हुआ जिसका नाम मणग रखा गया। १. (अ) मूल-जीवराज घेलाभाई दोशी, अहमदाबाद, सन् १९१२, १९२४; हीरालाल हंसराज, जामनगर, सन् १९३८; उमेदचन्द रायचन्द, अहमदाबाद, सन् १९३०, शान्तिलाल व. शेठ, ब्यावर, वि० सं० २०१०. (आ) हरिभद्र और समयसुन्दर की टीकाओं के साथ-भीमसी माणेक, बम्बई, सन् १९००. (इ) समयसुन्दरविहित वृत्तिसहित-हीरालाल हंसराज, जामनगर, सन् १९१५, जिनयशःसूरि ग्रन्थमाला, खंभात, सन् १९१९. (ई) भद्रबाहुकृत नियुक्ति की हरिभद्रीय वृत्ति के साथ-देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, बम्बई, सन् १९१८; मनसुखलाल हीरालाल, बम्बई, वि० सं० १९९९. (उ) भद्र बाहुकृत नियुक्तिसहित-E. Leumann, ZDMG. Vol. 46, pp. 581-663. (ऊ) अंग्रेजी अनुवादसहित-W. Schubring, Ahmedabad, 1932; N. V. Vaidya, Poona, 1937. (ऋ) हिन्दी टीकासहित-मुनि आत्मारामजी, ज्वालाप्रसाद माणकचन्द जौहरी, महेन्द्रगढ़ (पटियाला), वि० सं० १९८९; जैन शास्त्रमाला कार्यालय, लाहौर, वि० सं० २००३; मुनि हस्तिमल्लजी, मोतीलाल बालमुकुन्द मूथा, सातारा, सन् १९४०. (ए) हिन्दी अनुवादसहित-अमोलकऋषि, सुखदेवसहाय ज्वाला प्रसाद जौहरी, हैदराबाद, वी० सं० २४४६; मुनि त्रिलोकचन्द्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002095
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1966
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Canon, & Agam
File Size15 MB
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