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________________ ५४८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सिद्धचक्ररास में श्रीपाल का लोकप्रसिद्ध चरित्र पद्यबद्ध है, इसमें कवि ने श्रीपाल के चरित्र के माध्यम से सिद्धचक्र नवकार मन्त्र का माहात्म्य बताया है इसलिए इसके दोनों नाम प्रसिद्ध हैं। कवि ने रास के अन्त में लिखा है कि जो भी यह रास पढ़ेगा वह नवकार मन्त्र के बल से उसी प्रकार सर्वसिद्धि प्राप्त करेगा जिस प्रकार राजा श्रीपाल ने प्राप्त किया था, यथा 'रास रच्यो सिद्धचक्र नो ओ मा० गाइउ श्री नवकार, एकमनां जे सांभलइ ओ मा० तेह घरि मंगलमाल रिद्धि अनन्ती भोगवइ ओ मा० जिम नृपति श्रीपाल।'1 गुरुपरम्परा के अन्तर्गत कवि ने नागेन्द्रगच्छ के गुणसमुद्र सूरि, आणंद प्रभसूरि और गुणदेव सूरि का वंदन किया है तत्पश्चात् रास की रचना तिथि बताई है : 'तास सीस अ रास रचिउ ओ मा० ज्ञानसागर उवझाय, संवत पनर अकत्रीसइ मागसिरिइं ओ मा० उजलीबीज गुरुवार ।' जीवभवस्थिति रास-बृहत् रास ग्रन्थ है और निश्चित रूप से १६वीं शताब्दी का है अतः यही उसका भी परिचय दिया जा रहा है। इसे बड़तपगच्छीय ज्ञानसागर के शिष्य वाछा की रचना कहा गया है। यह कृति सं० १५२० में लिखी गई। इस सन्दर्भ में इसकी अन्तिम पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं : 'बड़तपगछ रत्नागरसागर जिम भरपूरि, तिहांगच्छपति अछइ विद्यमान श्री ज्ञानसागर सूरि । तास वयण सुण्यां मनशुद्धिइ तीणइं बुद्धि हुओ प्रकाश, कीधु उपगारतणी मति जीवभवस्थिति रास । रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है : 'पनर से बीसा फागुण सिद्धि तणउ निवास, रवि पक्ष अने तित्थि तेरसि ते रच्यउ पुन्य प्रकाश ।' यह हो सकता है कि यह रचना वाछा या वच्छ की हो और वे अन्य ज्ञानसागर के शिष्य हों, केवल भ्रमवश यह रास इन ज्ञानसागर के नाम से प्रचलित हो गया हो । अतः यह प्रश्न विचारणीय है। १-२. देसाई-० ग० क-भाग १ पृ० ५६-५८ और भाग ३ पृ० ४८७-४८८ ३. वही -भाग १, पृ०५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002090
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages690
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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