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________________ विषय सूची २०७, तर्कके द्वारा व्याप्तिके ग्रहणका समर्थन २०८, प्रत्यक्षसे व्याप्तिका ज्ञान माननेवाले बौद्धोंका पूर्वपक्ष २०९, जैनोंके द्वारा तर्ककी आवश्यकताका समर्थन २०९, अनुमानप्रमाण २१२, अनुमानका लक्षण २१२, हेतुके लक्षण के विषय में बौद्धोंका पूर्वपक्ष २१२ ( हेतुके तीन लक्षण पक्षधर्मत्व, सपक्षत्व और विपक्ष असत्त्वका समर्थन ), जैनोंका उत्तरपक्ष २१३, (त्रैरूप्य हेत्वाभास में भी रहता है २१३, अन्यथानुपपत्ति ही हेतुका सम्यक् लक्षण है २१५) हेतुके योगकल्पित पांच रूप्य लक्षणकी आलोचना २१५ ( त्रैरूप्यकी तरह पांचरूप्य लक्षण भी सदोष है, अन्यथानुपपत्ति या अविनाभाव नियम ही हेतुका सम्यक् लक्षण है २१६) । अविनाभाव के दो भेद २१६, हेतुके भेद २१७, हेतुके भेदोंके विषय में बौद्धका पूर्वपक्ष २१८ ( बौद्ध के अनुसार हेतुके दो ही भेद हैं- कार्यहेतु और स्वभावहेतु २१८ ), उत्तरपक्ष २१९ ( अन्य हेतुओंके सद्भावकी सिद्धि २२२ ) हेतुके पाँच भेद माननेवाले नैयायिकका पूर्वपक्ष २२२, उत्तरपक्ष २२३ ( पाँचसे अतिरिक्त भी हेतुओंकी सिद्धि ), सांख्यसम्मत हेतुओंके भेदोंका निराकरण २२३, साध्यका स्वरूप २२४, अर्थापत्ति प्रमाणके सम्बन्ध में मीमांसकोंका पूर्वपक्ष २२४, जैनोंके द्वारा अर्थापत्तिका अनुमानमें अन्तर्भाव २२६, अनुमानके अवयव २२९, अनुमान के अवयवोंके विषय में बौद्धका पूर्वपक्ष २२९, ( केवल हेतुका ही प्रयोग आवश्यक है, प्रतिज्ञाका नहीं २३० ), उत्तरपक्ष २३, ( पक्षका प्रयोग भी आवश्यक है २३१), अनुमानके भेद २३२ । आगम या श्रुतप्रमाण २३२, वैशेषिकोंका पूर्वपक्ष २३३ ( शब्द प्रमाण अनुमान से भिन्न नहीं है २३३ ), उत्तरपक्ष २३४ ( अनुमान से भिन्न शब्द प्रमाणकी सिद्धि ), बोद्धों का पूर्वपक्ष २३६ ( शब्दप्रमाण ही नहीं है अतः उसका अनुमान में अन्तर्भावका प्रश्न ही नहीं है २३६ ), उत्तरपक्ष २३७ ( शब्दप्रमाणकी सिद्धि २३७ ), मीमांसकका पूर्वपक्ष २४० ( शब्द और अर्थका नित्य सम्बन्ध है २४२ ), उत्तरपक्ष २४२ ( शब्द और अर्थ का नित्य सम्बन्ध नहीं है २४३ ), शब्द के अर्थके विषय में बौद्धोंका पूर्वपक्ष २४३ ( अन्यापोह ही शब्दार्थ है २४४ ), अन्यापोहका अर्थ २४५ ), उत्तरपक्ष २४६ ( अन्यापोहका निराकरण २४६ ), शब्दार्थ के विषय में मीमांसकका पूर्वपक्ष २४९ ( शब्दका विषय सामान्य मात्र है ), उत्तरपक्ष २५० ( शब्दका विषय सामान्य मात्र नहीं है किन्तु सामान्य विशेषात्मक है २५३), शब्दको नित्य माननेवाले मीमांसकों का पूर्वपक्ष २५४, उत्तरपक्ष - शब्द अनित्य है २५५, वेदको अपौरुषेय माननेवाले मीमांसकोंका पूर्वपक्ष २६०, उत्तरपक्ष-- वेदके अपौरुषेयत्वकी समीक्षा २६२, स्फोटवादी वैयाकरणोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002089
Book TitleJain Nyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Nyay, & Epistemology
File Size16 MB
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