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________________ जैन विश्व भारती, लाडनू के अन्तर्गत ब्राह्मी विद्यापीठ एवं पारमार्थिक शिक्षण संस्था में लगभग चार वर्ष (सन् १९७६ से १९७९ तक) जैन विद्या एवं प्राकत के प्राध्यापक के रूप में कार्य करने का सअवसर मझे इस क्षेत्र में बहुत कुछ उपलब्धियाँ कराने में वरदान सिद्ध हुआ है। अर्धमागधी तथा शौरसेनी आगम, जैन दर्शन, संस्कृत-साहित्य एवं प्राकृत भाषा आदि के अध्ययन-अध्यापन, आगम-वाचना, प्रेक्षाध्यान शिविर, सम्पादन कार्य इत्यादि प्रवृत्तियों में सम्मिलित होने के साथ ही सन्तों एवं विद्वानों के समागम का मझे यहां पूर्ण लाभ प्राप्त करने का स अवसर प्राप्त हुआ है तथा यहीं रहकर मुझे 'लाडन के जैन मन्दिर का कला वैभव, नामक पुस्तक लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो कलकत्ता के स्व. श्री नथमल जी सेठी के ट्रस्ट में इसी वर्ष प्रकाशित हुई है। वाराणसी के श्री स्याद्वाद महाविद्यालय एवं पाश्र्जनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान तथा कटनी के श्री शान्ति निकेतन जैन संस्कृत विद्यालय के उपकार को कैसे भलाया जा सकता है, जहां अनेक वर्षों तक रहकर मझे अध्ययन, अनुसंधान एवं स्वयं के निर्माण की सभी सुविधायें प्राप्त रहीं। इन संस्थाओं के पुस्तकालयीय सहयोग के साथ ही काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के केन्द्रीय तथा जैन दर्शन एवं प्राकृत विभागीय पुस्तकालयों, श्री गणेशवर्णी दिo जैन संस्थान, जैन विश्वभारती, लाडनू जैन सिद्धान्त भवन, आरा, श्री दि० जैन मंदिर सुजानगढ़ (राज.) तथा दलपतपुर [सागर म. प्र. दि. जैन उदासीन आश्रम ईसरी आदि के पुस्तकालयों एवं शास्त्र भण्डारों से मुझे पूरा सहयोग प्राप्त हुआ है। मैं इनके व्यवस्थापकों को धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। श्री बाबूलालजी फागुल्ल, महावीर प्रेस वालों ने इसके अच्छे मुद्रण में भरपूर सहयोग दिया, अतः आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में सजगता, आत्मसंतोष तथा तत्काल अत्यावश्यक भूल सुधार आदि हेतु प्रफ संशोधन का दायित्व मैंने स्वयं लिया ताकि मूल सन्दर्भो', पारिभाषिक शब्दों और सैद्धान्तिक विषयों में यथासम्भव त्रुटियां न रहें । किन्तु इसके बावजूद भी प्रूफ की अशुद्धियाँ तथा कुछ कमियां और त्रुटियां अल्पज्ञतावश रह जाना स्वाभाविक है, अतः क्षमा करेंगे। साथ ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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