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________________ मूलगुण : ५५ हिंसा आदि उपर्युक्त पाँच असत्प्रवृत्तियों का त्याग व्यक्ति अपनी शक्ति के अनुसार तो कर सकता है किन्तु सभी प्राणी इनका सार्वत्रिक और सार्वकालिक त्याग एक समान नहीं कर सकते। अतः इन असत्प्रवृत्तियों से एकदेश निवृत्ति को अणुव्रत तथा सर्वदेश निवृत्ति को महाव्रत कहा जाता है। जिन व्रतों में जाति, देश, काल आदि का अपवाद नहीं रहता वे महाव्रत हैं। वस्तुतः व्रत अपने आप में अणु या महत् नहीं होते, यह विभाजन और ये विशेषण तो व्रत के साथ पालन करने वाले की क्षमता या सामर्थ्य पर आश्रित है । जब साधक अपने आत्मबल से सर्वदेश रूप में व्रतों के धारण और निरतिचार पालन में पूर्ण समर्थ हो जाता है तब उसके व्रत महाव्रत एवं वह महाव्रती-श्रमण कहा जाता है । हिंसाविरति, सत्य, अदत्तपरिवर्जन, ब्रह्मचर्य और संगविमुक्ति (अपरिग्रह)ये पाँच महाव्रत हैं ।' मूलाचारकार ने प्राणिवध, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन तथा परिग्रह-इन पांच (पापों) से विरत होने को पांच प्रकार का चारित्राचार भी कहा है । मूलगुणों के अन्तर्गत पाँच महाव्रत श्रमणाचार के आधारभूत गुण हैं । आचार-विचार एवं व्यवहार आदि विषयक विभिन्न नियमों-उपनियमों तथा कार्यों का प्रणयन इन्हीं के अन्तर्गत होता है । मूलाचार में महाव्रत उन्हें कहा है जिनसे महार्थ रूप मोक्ष की सिद्धि होती है। इसीलिए तीर्थंकरादि महापुरुषों ने इनका पालन किया है। महाव्रत में सभी पाप योगों का सर्वथा त्याग किया जाता है अतः वे स्वतः पूज्य हैं। पाँच महाव्रत १. हिंसाविरति (अहिंसा)-हिंसाविरति रूप इस प्रथम महाव्रत का अधिक प्राचीन रूप 'पाणातिपातवेरमण' है। इसका स्वरूप 'अहिंसा' शब्द द्वारा अभिहित हुआ है । अहिंसा से तात्पर्य पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रसये छह-कायिक जीव, इन्द्रिय, गुणस्थान, मार्गणा, कुल, आयु और योनि-इनमें १. मूलाचार ११४. २. पाणिवहमुसावाद अदत्तमेहुण परिग्गहा विरदी । एस चरित्ताचारो पंचविहो होदि णादव्वो ।। वही ५।९१. ३. साहति जं महत्थं आचरिदाणी य ज महल्लेहिं । जं च महल्लाणि तदो महव्वयाई भवे ताई॥ वही ५।९७, भगवती आराधना-११८४. ४. पढमे भंते ! महन्वए पाणाइवायाओ वेरमणं ।-दशवकालिक ४-११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002088
Book TitleMulachar ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1987
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size23 MB
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