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________________ २०६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणो-संघ ___ द्वितीय बौद्ध संगीति के बाद बौद्ध धर्म एक एकीकृत (अखण्ड) धर्म के रूप में नहीं रह गया था, अपितु कई निकायों में विभाजित हो गया था। बाद में विभाजित बौद्ध धर्म का चित्र ही हमारे समाने उपस्थित होता है। तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व अर्थात् सम्राट अशोक के समय तक बौद्ध धर्म में विकसित हुए १८ निकायों का पता चलता है। अतः हम कह सकते हैं कि वास्तविक अर्थों में बाद के बौद्ध धर्म का इतिहास निकायों का इतिहास है। इसी प्रकार बौद्ध भिक्षुणी-संघ का विकास भी उन्हीं बौद्ध निकायों का विकास है, जिसकी वे सदस्या थीं । यद्यपि किसी भिक्षणी के किसी विशेष निकाय के संघ में प्रविष्ट होने अथवा उसका सदस्य बनने का उल्लेख नहीं मिलता। भिक्षु के सन्दर्भ में ही उसके किसी विशिष्ट निकाय के सदस्य होने का उल्लेख प्राप्त होता है। ऐसे स्थानों से प्राप्त भिक्षुणियों से सम्बन्धित अभिलेखों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वे उस स्थान पर विकसित निकाय की सदस्याएं थीं। भारतभर में बिखरे हुए अभिलेखों के प्राप्ति-स्थल एवं ग्रन्थों विशेषकरथेरीगाथा को अट्ठकथा (परमत्थदीपनी) के माध्यम से बौद्ध भिक्षुणी-संघ के प्रसार को देखा जा सकता है। अभिलेखों में भिक्षणियों द्वारा दिये गये दानों का उल्लेख है। अतः जिन स्थानों पर भिक्षुणियों के दानों का उल्लेख है, वहाँ-वहाँ भिक्षुणियाँ अथवा उनका कोई छोटा या बड़ा संघ अवश्य रहा होगा-यह अनुमान सहज ही किया जा सकता है। उत्तर भारत में प्रसार उत्तर भारत में बौद्ध धर्म का प्रभाव अत्यन्त प्रबल था। बुद्ध द्वारा व्यतीत किये हुए वर्षावासों से प्रतीत होता है कि उनका विचरण स्थल भी मुख्य रूप से इन्हीं क्षेत्रों में था । सारनाथ, कौशाम्बी, कोशल (श्रावस्ती) वैशाली, मगध, चम्पा, राजगृह, मथुरा, कपिलवस्तु, बोध गया आदि वे महत्त्वपूर्ण स्थल थे, जहाँ उनके जीवनकाल में ही बौद्ध धर्म अत्यन्त प्रभावशाली हो गया था और उसी के साथ ही भिक्षुणी-संघ भी एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में विद्यमान था। तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व में अशोक ने तथा प्रथम शताब्दी ईस्वी में कुषाण कनिष्क ने बौद्ध धर्म के विकास में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। लगभग इसी समय से प्राप्त अभिलेखों से हमें बौद्ध धर्म की व्यापकता की सूचना मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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