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________________ १७८ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ में प्रवेश कर अनेक दुराचारों को जन्म दे सकते थे। अतः इन परिस्थितियों का निराकरण करने के लिए प्रारम्भ से ही प्रयत्न किया गया था । भोजन, वस्त्र, पात्र आदि के सम्बन्ध में भी दोनों संघों के दण्डविधान में समानता दिखाई पड़ती है। सादा एवं सात्त्विक भोजन ही ग्रहण करने का विधान था। रात्रि-भोजन दोनों ही संघों में अग्रहणीय था। गहीत पदार्थ चाहे जैसा भी हो, उसे सत्कारपूर्वक ग्रहण करने का विधान था। वस्त्र, पात्र आदि के सम्बन्ध में भी नियम बनाये गये थे तथा दाता की भावनाओं का भी सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाता था। दोनों संघों में भिक्षणियों को भिक्षावृत्ति या यात्रा के समय शरीर को पूरी तरह ढंक कर जाने की सलाह दी गयी थी। इन नियमों का अतिक्रमण करने पर दोनों संघों में दण्डों की लगभग समान व्यवस्था थी। दोनों संघा में भिक्षुणियों को परिहार (परिवास) दण्ड देने का निषेध था। ऐसा सम्भवतः उनकी शील-सुरक्षा के दृष्टिकोण से किया गया था। ___ दोनों भिक्षुणी-संघों के प्रायश्चित्त सम्बन्धी नियमों में कुछ अन्तर भी हैं, जो निम्न हैं (क) पारांजिक अपराधी जैन भिक्षुणी को कम से कम एक वर्ष तथा अधिक से अधिक १२ वर्ष तक गृहस्थ वेश पहना कर पुनः श्रमण-धर्म में प्रवेश दिया जा सकता था। इसके विपरीत पाराजिक अपराधी बौद्ध भिक्षणी को संघ से सर्वदा के लिए निकाल दिया जाता था । ऐसी भिक्षुणी को 'अभिक्खुनी" कहा गया है। (ख) दण्ड देने की प्रक्रिया में भी दोनों संघों में अन्तर था। बौद्ध संघ में सारी प्रक्रिया संघ के समक्ष प्रस्तुत की जाती थी। ज्ञप्ति, तीन बार वाचना तथा अन्त में धारणा के द्वारा संघ की मौन सहमति को उसकी स्वीकृति जानकर अपराधी को दण्ड-मुक्त किया जाता था। जैन संघ में इस लम्बी प्रक्रिया का अभाव था। अपराधी भिक्षुणी को प्रायश्चित्त के लिए पूरे संघ के समक्ष निवेदन नहीं करना होता था, अपितु गच्छ या संघ के पदाधिकारियों के सम्मुख वह स्वयं निवेदन करती थी। (ग) जैन संघ में जब कोई भिक्षुणी अपराध करती थी, तब वह तुरन्त अपने गच्छ-प्रमुख या प्रवत्तिनी के पास जाकर अपने अपराधों को बताती थी । बौद्ध संघ में इस प्रकार का नियम नहीं था । यहाँ प्रत्येक १५वें दिन उपोसथ के समय पातिमोक्ख नियमों की वाचना होती थी,जिसमें सारे नियमों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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