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________________ १७४ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ (ड) जो दिव्य शक्ति के प्राप्त होने का प्रचार करे, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्त। (ढ) जो भिक्षणी संघ की वस्तुओं को असावधानीपूर्वक इधर-उधर रख दे या क्रोध में किसी दूसरी भिक्षणी को उपाश्रय से निकाल दे, तो पाचित्तिय प्रायश्चित्त । (ण) बिना प्रमाण का संघादिसेस दोष लगाने पर पाचित्तिय प्रायश्चित्त । (त) संघ के लिए प्राप्त वस्तु का अपने लिए उपयोग करने पर पाचित्तिय प्रायश्चित्त । (थ) दूसरी भिक्षुणियों को जान-बूझकर परेशान करने पर पाचित्तिय प्रायश्चित्त । आहार सम्बन्धी अपराध जैन भिक्षुणीः-(क) रात्रि-भोजन करने पर अनुद्धातिकं प्रायश्चित्त । __(ख) नाव में या जल में बैठे या खड़े होकर भोजन ग्रहण करने पर चातुर्मासिक उद्घातिक प्रायश्चित्त । (ग) जो दिन के भोजन की निन्दा करे तथा रात्रि-भोजन की प्रशंसा करे तथा प्राप्त भोजन को अन्तिम प्रहर में ग्रहण करे, तो चातुर्मासिक अनुद्धातिक प्रायश्चित्त । (घ) गृहस्थ के बर्तन में भोजन करे, तो चातुर्मासिक उद्घातिक प्रायश्चित्त । (ङ) दो कोस की दूरी से अधिक जाकर भोजन की गवेषणा करे, तो चातुर्मासिक उद्घातिक प्रायश्चित्त । १. पातिमोक्ख, भिक्खुनी पाचित्तिय, १०४. २. वही, ११०, १११, ११२, ११३, ११४. ३. वही, १५४. ४. वही, १६०. . ५. वही, १५५, १५६. ६. बृहत्कल्पसूत्र, ४/१. ७. निशोथ सूत्र, १८।१९-२३. ८. वही, ११।१७७-१८६. ९. वही, १२।१४. १०. वही, १२।३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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