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________________ १६६ : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ २९ Jain Education International ७ ८ १० २५ २२ २३ २४ २६ २७ २८ जो भिक्षुणी विशिष्ट परिस्थिति (चीवर फट जाने अथवा नष्ट हो जाने पर) के अतिरिक्त अज्ञात गृहपति से चीवर माँगे । यथेच्छ चीवर प्राप्त होने पर आवश्यकता से एक कम चीवर ग्रहण करना चाहिए, जो भिक्षुणी इस नियम का अतिक्रमण करे । जो भिक्षुणी उद्देश्यपूर्वक उत्तम चीवर की याचना करे । जो भिक्षुणी प्राप्त चीवर में परिवर्तन कराये । जो भिक्षुणी चीवर माँगने के लिए किसी के पास दो-तीन बार से अधिक जाये । जो भिक्षुणी सोना, चाँदी ( जातरूपरजतं) को ग्रहण करे । भिक्षुणी नाना प्रकार के रूपयों का व्यवहार ( रूपियसंवोहार) करे । जो भिक्षुणी नाना प्रकार के चीवर, भैषज्य आदि का क्रय-विक्रय करे । भिक्षुणी पाँच से कम छेद वाले पात्र को बदल कर नया पात्र ले | जो भिक्षुणी घी, तेल, मधु, मक्खन, खांड को एक सप्ताह से अधिक रखकर उसको ग्रहण करे । जो भिक्षुणी स्वयं किसी भिक्षुणी को चीवर देकर बाद में कुपित तथा असन्तुष्ट हो । जो भिक्षुणी सूत माँगकर जुलाहे से चीवर बुनवाये । जो भिक्षुणी जुलाहे से कहकर चीवर में परिवर्तन करवाये । जो भिक्षुणी अतिरिक्त चीवर को चीवर - काल से अधिक समय तक ग्रहण करे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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