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________________ १३० : जैन और बौद्ध भिक्षुणी-संघ आदि से सम्बन्धित नियम) की जानकारी आवश्यक थी। आचार-प्रकल्प के नियमों को विस्मत कर देने पर भिक्षणी इस पद के लिए अयोग्य हो जाती थी, परन्तु इन नियमों को पूनः याद कर लेने के पश्चात् वह इस पद को अधिकारिणी मान ली जाती थी। इस पद की नियक्ति में अनेक नियमों का पालन करना पड़ता था । यात्रा आदि के समय मरणासन्न प्रत्तिनी द्वारा प्रस्तावित किसी भिक्षुणी को कुछ समय के लिए इस पद पर बैठा दिया जाता था—ऐसा करना इसलिए आवश्यक था, क्योंकि किसी भी अवस्था में जैन भिक्षुणियों को प्रत्तिनी के बिना रहने की आज्ञा नहीं थी। पर ऐसी पदासीन भिक्षुणी स्थायी रूप से इस पद की अधिकारिणी नहीं मान ली जाती थी । यदि वह अयोग्य समझी जाती थी, तो संघ की अन्य भिक्षुणियाँ मिलकर उसे पद से हटा देती थीं तथा योग्य भिक्षुणी को इस पद पर बैठाती थीं । अस्थायी रूप से नियुक्त प्रवत्तिनो को भी संघ की भिक्षुणियों द्वारा यथोचित सम्मान देने का विधान था। ... प्रत्तिनी का मुख्य कर्त्तव्य अपने संघ की भिक्षुणियों की सुरक्षा करना था। हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में यात्रा आदि के समय प्रत्तिनी को कम से कम दो भिक्षणियों के साथ तथा वर्षा ऋतु में कम से कम तीन भिक्षुणियों के साथ रहने का विधान था।' प्रत्रत्तिनी का एक प्रमुख कार्य संघ में उत्पन्न हुए कलह को शान्त करना होता था वह मधुर वाणी में भिक्षुणियों के कलह को शान्त करने का प्रयास करती थी। योग्य नारियों को संघ में दीक्षित कराने का गुरुतर कार्य भी प्रवत्तिनी को ही करना पड़ता था। जैन भिक्षुणी-संघ की संगठनात्मक व्यवस्था में उपर्युक्त पदों के अतिरिक्त गणावच्छेइणो (गणावच्छेदिनी), गणिनी तथा मयहरिया (महत्तरिका) नामक कुछ अन्य पदों का भी उल्लेख प्राप्त होता है। गणावच्छेइणी (गणावच्छेदिनी) सर्वप्रथम छेद ग्रन्थों में गणावच्छेदिनी का उल्लेख प्राप्त होता है। इसका उल्लेख न तो आगम ग्रन्थों में है और न तो परवर्ती काल के भाष्य १. व्यवहार सूत्र, ५/१६. २. वही, ५/ २-१४. ३. वही, ५/१-४. ४. बृहत्कल्पभाष्य, भाग तृतीय, २२२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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