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________________ भिक्षुणियों के शील सम्बन्धी नियम : १२५ ने कहा था कि बुद्ध की भिक्षु-भिक्षुणियाँ उनकी इच्छा के अनुकूल विनीत एवं विशारद हो गये हैं । मज्झिम निकाय' के अनुसार वत्सगोत्र ने बुद्ध से पूछा कि कितनी भिक्षुणियाँ हैं, जो आश्रवों (चित्तमलों) के क्षय से आस्रवरहित चित्त-विमुक्ति (मुक्ति), प्रज्ञा-विमुक्ति की इसी जन्म में स्वयं जान कर, साक्षात्कार कर विहरती हैं ? बुद्ध ने उत्तर दिया कि ऐसी अनेक भिक्षणियाँ हैं, जो चित्त-विमुक्ति, प्रज्ञा-विमुक्ति को इसी जन्म में स्वयं जानकर, साक्षात्कार कर, प्राप्त कर विचरती हैं। महावंस में थेरी संघमित्रा द्वारा निर्वाण-पद प्राप्त करने का उल्लेख है। महावंस में ही १८००० भिक्षओं तथा १४००० भिक्षुणियों द्वारा अर्हत्-पद पाने का उल्लेख है। इसी ग्रन्थ से यह ज्ञात होता है कि अशोक के समय सम्पन्न हुई तीसरी गद्ध संगीति में उपस्थित हुई भिक्षुणियों में से १००० आस्रव-मुक्त थीं।४ फाहियान तथा ह्वेनसांग --दोनों चीनी यात्रियों ने वैशाली में निर्मित एक स्तूप का उल्लेख किया है। उस पर उत्कीर्ण लेख से यह ज्ञात होता है कि बुद्ध की मौंसी महाप्रजापति गौतमी तथा अन्य भिक्षुणियों ने निर्वाण-पद को प्राप्त किया था। हम देखते हैं कि अधिकांश भिक्षुणियाँ शील-सम्पन्न होतो थीं तथा ध्यान और साधना के द्वारा निर्वाण-पद को प्राप्त करती थीं। काम-राग आदि दोषों के ऊपर उन्होंने विजय प्राप्त कर ली थी तथा सांसारिक आकर्षण से वे मुक्त हो चुकी थीं। मार द्वारा भय उपस्थित किए जाने पर भी उनमें भय का संचार नहीं होता, अपितु वे स्वयं मार को ही भयभीत कर देती हैं। तुलना-दोनों संघों की भिक्षुणियों के शील सम्बन्धी विस्तृत नियमों को देखने से यह स्पष्ट होता है कि दोनों संघों के आचार्य भिक्षणियों की शील-रक्षा के प्रति अधिक चिन्तित थे। उन्होंने उन प्रत्येक परिस्थितियों के निवारण का प्रयत्न किया था जिनसे काम-भावना उद्दीप्त हो सकती थी। काम सम्बन्धी अपराधों के कारणों की उन्होंने सूक्ष्म १. मज्झिम निकाय, २/७३. २. महावंस, २०/५०. ३. वही, २९/६९. ४. वही, ५/१८८. 5. Buddhist Records of the Western world, Vol. I. P. 32. 6. Ibid, Vol, III. P. 309. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002086
Book TitleJain aur Bauddh Bhikshuni Sangh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArun Pratap Sinh
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1986
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size11 MB
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