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________________ सिद्धसेन दिवाकर और उनका समय किया है। इसी से विक्रम की दूसरी शताब्दी में होने वाले अनुयोगद्वार के कर्ता श्री आर्यरक्षित ने सूत्रस्पर्शिक नियुक्ति का (अनुयोगद्वार सूत्र-१५५) उल्लेख किया है। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने अनुयोगद्वार में (१५६) कुछ गाथाएँ भी उद्धृत की हैं जो भद्रबाहु की नियुक्तियों में हैं। पं०सुखलाल जी संघवी ने 'सन्मति प्रकरण' की संपूर्ति में नियुक्ति के रचनाकाल को आदरणीय मुख्तार जी के अनुसार छठी शताब्दी में मानने को अयुक्तियुक्त बतलाते हुए कहा है कि 'अगर हम दुर्जन तुष्टि न्याय से सब नियुक्तियों को पूर्णरूपेण छठी शताब्दी की रचना मानें तो अनुयोगद्वार गत 'निज्जुत्ति' पद का तथा अनुयोगद्वार में आई हुई नियुक्तिगत गाथाओं का एवं मोविन्द भिक्षु कृत नियुक्ति के प्राचीनतर विश्वस्त उल्लेख का खुलासा किसी तरह हो ही नहीं सकता।५८ ___ इसके अतिरिक्त यदि छठी शताब्दी के पूर्व नियुक्तियाँ नहीं थीं तो फिर कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में प्राप्त नियुक्ति गाथाएँ, शिवार्यकृत भगवती-आराधना में प्राप्य बीसों नियुक्तिगत गाथाएँ एवं वट्टकेर के मूलाचार में प्राप्य शताधिक नियुक्तिगत गाथाएँ आईं कहाँ से? मात्र यही नहीं, मूलाचार में जो यह कहा गया है कि सामायिक आदि की नियुक्ति को संक्षेप में कहता हूँ,-- वह कैसे सम्भव हो सकता है? या तो वे यह माने कि नियुक्तियाँ उसके पहले थीं, या यह मानें कि ये सभी आचार्य छठी शताब्दी के बाद हुए हैं। दिगम्बर परम्परा में तो कुन्दकुन्द, शिवार्य, वट्टकेर आदि आचार्यों को निर्यक्तिकार भद्रबाहु से पहले माना जाता है,५९ यह बात तो आदरणीय मुख्तार जी को भी मान्य होगी। अतः जब नियुक्तियाँ केवल छठी शताब्दी के भद्रबाहु द्वितीय की ही रचनाएँ नहीं हैं तो नियुक्ति के समय को लेकर उपयोग के क्रमवाद को छठी शताब्दी के साथ जोड़ना यत्किंचित् भी तर्कसंगत न होकर एकांगिता है। __ अब जो आदरणीय मुख्तार जी ने कुन्दकुन्द और भूतबलि को युगपद्वाद का विधायक मानते हुए उन्हें उमास्वाति के पूर्ववर्ती सिद्ध किया है,६० आइए उस मत की परीक्षा करें। पण्डित सुखलाल जी संघवी ने उमास्वाति को युगपद्वाद का सर्वप्रथम बोध कराने वाला माना है६१ एवं विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर प्राचीन से प्राचीन समय विक्रम की पहली शताब्दी और अर्वाचीन से अर्वाचीन समय तीसरी चौथी शताब्दी निर्धारित किया है।६२ पण्डित मुख्तार जी का उपर्युक्त कथन तब तर्कसंगत माना जा सकता है जब कुन्दकुन्दाचार्य एवं भूतबलि का समय उमास्वाति से पहले हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002085
Book TitleSiddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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