SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुंकुमपत्रिकाओं, वैवाहिक निमन्त्रण-पत्रों आदि में और भाषण आरम्भ करने से पूर्व भी यह श्लोक लिखा, पढ़ा अथवा बोला जाता है । प्रश्न है - अब तक हुए अनेक तीर्थंकरों, गणधरों, प्राचार्यों में से केवल तीर्थंकर वीर, गौतम गणधर तथा श्राचार्य कुन्दकुन्द का ही मंगलरूप में स्मरण क्यों किया गया, औरों का क्यों नहीं किया ? मानवीय स्वभाव है कि जिससे उसका हित साधन होता है, जिसके साथ उसका निकटतम सम्पर्क अथवा लगाव होता है, जिससे उसको वात्सल्य मिलता है प्रथवा जो उपकारक हैं, हितकारक हैं - किसी शुभ अवसर पर या किसी भी प्रकार का कष्ट, विपत्ति, विघ्न आदि होने पर सबसे पहले वह उसीका स्मरण करता है, उसी को पुकारता है । वर्तमान में हम पर भगवान् महावीर का महान् उपकार है । हम उन्हीं के शासन में रह रहे हैं । एक तीर्थंकर के निर्वाण के पश्चात् जब तक दूसरा तीर्थंकर इस धरा पर नहीं होता तब तक पहले निर्वाण प्राप्त तीर्थंकर का शासन चलता है । उनका दिया उपदेश, उनका बताया मार्ग ही हमारे आत्मकल्याण के लिए पथ आलोकित करता है, हमें कुपथ से हटा सन्मार्ग की ओर चलने की प्रेरणा देता है, हम में हेय उपादेय का विवेक जागृत करता है । इस समय अवसर्पिणी का पंचमकाल चल रहा है । भगवान् महावीर इसी अवसर्पिणी के अन्तिम चौबीसवें तीर्थंकर थे, मुक्तिमार्ग के नेता थे, अष्टकर्मों के भेत्ता थे, हितोपदेशी थे, केवलज्ञानी थे । उन्ही की वारणी - गंगा से निकले द्वादशांगवाणीरूप प्रमृतजल का कुछ अंश संसार के संतप्तजनों को शांति सुलभ कराने हेतु प्राज भी उपलब्ध है । २ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002084
Book TitleAcharya Kundkunda Ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year1988
Total Pages18
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, E000, E005, N000, & N015
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy