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________________ ४८ जैन तर्कशास्त्र के सप्तभंगी नय की आधुनिक व्याख्या है । अतएव प्रत्येक पदार्थ को द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा से नित्य, सामान्य और सत् तथा पर्यायाथिक नय की अपेक्षा से अनित्य, विशेष और असत् मानना युक्तिसंगत है । वस्तु को सर्वथा एकान्तिक मानने से विरोध आता है। अतः उसे अनेकान्तिक ही कहना चाहिए। एकान्त का अर्थ होता है वस्तु में एक ही धर्म को स्वीकार करना, किन्तु यह वस्तु की यथार्थता के सर्वथा विपरीत और असत्य है । परन्तु यह एकान्तताभी तभी तक मिथ्या होती है जब तक कि वह निरपेक्ष है या निरपेक्ष रूपसे किसी धर्मका कथन करती है। किन्तु सापेक्ष होने पर वही एकान्तता सत्य हो जाती है, सम्यक् हो जाती है । सम्यक् एकान्तता और मिथ्या एकान्तता में यही अन्तर है । सम्यक् एकान्त सापेक्ष होता है। जबकि मिथ्या एकान्त निरपेक्ष होता है । सम्यक् एकान्त भी अनेकान्त का ही वाचक है। सम्यक् एकान्त भी उसी प्रकार सत्य का उद्घाटन करता है जिस प्रकार अनेकान्त । पं० सुखलाल जी का कहना है कि "विचार करने और अनेकान्त दृष्टि के साहित्य का अवलोकन करने से मालम होता है कि अनेकान्त दृष्टि सत्य पर खड़ी है। यद्यपि सभी महान पुरुष सत्य को पसन्द करते हैं और सत्य की ही खोज तथा सत्य के निरूपण में अपना जीवन व्यतीत करते हैं तथापि"..."उससे भगवान् महावीर की सत्य प्रकाशन की शैली जुदा है। महावीर की सत्य प्रकाशन शैली का दूसरा नाम अनेकान्तवाद है। उसके मूल में दो तत्त्व हैं-पूर्णता और यथार्थता। जो पूर्ण है और पूर्ण होकर भी यथार्थ रूप से प्रतीत होता है वही सत्य है।' इस प्रकार संक्षेप में अनेकान्तवाद ही एक ऐसा सिद्धान्त है जो वस्तओं के विषय में होने वाले मताग्रहों एवं विरोधों का परिहार कर उसकी पूर्णता और यथार्थता का प्रकाशन करता है। इससे वस्तु के किसी भी पक्ष की हानि नहीं होती, अर्थात् यह वस्तु के सम्यक् स्वरूप का प्रतिपादन करता है। संक्षेप में यही अनेकान्तवाद का सार है। यही जैनदर्शन वी मूल दृष्टि है। समूचा जैन-दर्शन इसी पर आधारित है। डा० ब्रज बिहारी के अनुसार यही दृष्टिकोण ( अनेकान्तवाद ) जैन-दर्शन का सार है और इसी आधार पर जीव व जगत् की व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। १. दर्शन और चिन्तन भाग २, पृ० १५१ । २. जैन-दर्शन और संस्कृति, पृ० ८९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002082
Book TitleSyadvada aur Saptabhanginay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhikhariram Yadav
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size11 MB
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